गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूत करती रही यह सूफ़ियों की ईद ए गुलाबी |
इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को सूफ़ियों की ईद ए गुलाबी
या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था।
मुगल शासक शाहजहां के दौर में दिल्ली में होली मनाई जाती थी। जहां आज राज घाट है, वहां शाहजहां प्रजा के साथ रंग खेलते थे। बहादुर शाह जफर सबसे आगे निकले। उन्होंने होली को लालकिले का शाही उत्सव बना दिया। जफर ने इस दिन पर गीत भी लिखे, जिन्हें होरी नाम दिया गया। यह उर्दू गीतों की एक खास श्रेणी ही बन गई। जफर का लिखा एक होरी गीत
यानी फाग आज भी होली पर खूब गाया जाता है, क्यों-मोपे रंग की मारी पिचकारी, देखो कुंवरजी दूंगी मैं गारी। इस अंतिम मुगल शासक का यह मानना था कि होली हर मजहब का त्योहार है। उर्दू अखबार जाम-ए-जहांनुमा ने साल 1844 में लिखा कि होली पर जफर के काल में खूब इंतजाम होते थे। टेसू के फूलों से रंग बनाया जाता और राजा-बेगमें-प्रजा सब फूलों का रंग खेलते थे।
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