छठी शताब्दी ई.पु. से बसा जौनपुर आज ख़ास से आम " बन के रह गया |
जौनपुर के इतिहास को अधिकतर फ़िरोशाह तुग़लक़ से शुरू किया जाता है क्यों की वर्तमान जौनपुर को दिल्ली के बादशाह फ़िरोज़ शाह ने बसाया था | जौनपुर में मिले साक्ष्यों के आधार पे यह अवश्य कहा जा सकता है की जौनपुर ६०० ईसा पूर्व भी घनी आबादी वाला इलाक़ा था जबकि इसको श्रंखलाबद्ध तरीके से फ़िरोज़ शाह के जौनपुर बसाने तक जोड़ा नहीं जा सका है |
जौनपुर कभी कौशल राज्य के अन्तर्जात आता था तो उसके बाद मगध के अधीन रहा | ऐसा लगता है की 750 ई. के लगभग कन्नौज में यशोवर्मम नाम के एक शासक का उदय हुआ। उसने मगधनाथ को हराया और जौनपुर उनके अधीन हो गया |
पुरातात्विक साक्ष्यों से भी छठी शताब्दी ई.पु. में जौनपुर का अस्तित्व निश्चित रूप से प्रमाणित होता हैं | 944 ई. के आने तक जौनपुर जौनपुर चन्देलों के अधीन रहा । आज भी जौनपुर में चन्देल राजपू्तों की बहुत अच्छी संख्या है |
।0।9 ई. में महमुद गजनवी के आक्रमण को इसने झेला | सन् 1097 ई. में चन्द्र देव नामक एक गहड़वाल योद्धा
ने कन्नौज पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित की और ऐसा प्रतीत होता हैं कि उसके उत्तराधिकारियों ने जौनपुर तक अपनी विजय पताका फहराई क्योंकि चन्द्रदेव के चौथे वंशज विजय चन्द के समय तक गहड़वालों का शासन गोमती की घाटी में पूर्णछप से स्थापित हो चुका था | विजय चन्द के बाद जयचन्द्र तथा जयचन्द्र का पुत्र हरिश्चन्द्र कन्नौज की गद॒दी पर बैठा और जौनपुर को अपने अधीन किया।
राजपूतों में सर्वप्रथम रघुवंशी यहाँ आए जो, अपने, को, अयोध्या के पुराने राजाओं के बंशज बतलाते हैं और सम्भवतः ।2वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जौनपुर के पूवी क्षेत्र में आकर बसे| यह क्षेत्र इन्हें काशी नरेश चेतसिंह से वैवाहिक सम्बन्ध के आधार पर प्राप्त हुआ । रघुर्वशियों के यहाँ बसने से, पूर्व सोइरी और भर जाति के लोग यहाँ पूरी तरह संगठित हो चुके थे| सोईरी जाति का अब पता नहीं चलता, किन्तु यहाँ अनेक टीले और कुएँ आज भी विद्यमान हैं जिन्हें कहा जाता है कि सोइरियों ने. बनवाया था।
।।94 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कन्नौज के राजा विजयचन्द्र के पुत्र जयचन्द्र को. यमुना के किनारे पराजित किया और मार डाला। कुतुबुद्दीन ऐबक की विजय से गयासुद्दीन तुगलक तक बहुत से हिन्दू और मुस्लिम शासकों के अधीन रहा जौनपुर और जफराबाद लेकिन यह आबादी के साथ साथ आलिशान महलों के खंडहरों का शहर बन चुका था |
।32। ई. में मनहेच(जाफराबाद ) शक्ति सिंह द्वारा शासित था। ।32। ई. में गयासुददीन तुगलक ने अपने तीसरे पत्र जफरखान को, शक्ति सिंह के आधिपत्य से मनहेंच को अपने कब्जे में करने के लिए भेजा जिसमे ज़फर खान जीत गया | जफरखान के बाद ताँतार खाँ तथा एनुलमुल्क ने गवर्नर के रूप में इसे संभाला |
अटाला मस्जिद
इसके बाद फिरोज शाह इस क्षेत्र से, आकर्षित हुआ और उसने जौनपुर शहर के विस्तार की योजना बनायी और अपने भाई इब्राहिम शाह बरबक को. इस प्रदेश के शासन के लिए नियुक्त किया जिसने 'शाही किला में मौजूद मस्जिद' का निर्माण कराया ।
।393 ई. में फ़िरोज़शाह ने ख्वाजा जहां मालिक सर्वर को कन्नौज से, बिहार तक फैले; हुए एक विशाल क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त किया गया और इसका शासन केन्द्र जौनपुर बना |
फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ की मृत्यु के बाद जब दिल्ली के शासक जब निर्बल हो गए तो सुल्तान ख्वाजा जहाँ ने स्वयं को, स्वतंत्र घोषित किया और 1394 ई. में 'शर्की-वंश' की स्थापना की |
।399 ई. में मलिक सरवर या ख्वाजा जहां की मृत्यु होग ई और उसका दत्तक पुत्र मलिक करनफूल जिसने मुबारक शाह की उपाधि ली जौनपुर का शासक बना |
।402 ई. में मुबारक शाह की मृत्यु हो गई और उसका भाई इब्राहिम शाह 1402 में जौनपुर का शासक बन गया | उसने लगभग 39 वर्ष, तक राज्य किया और जौनपुर को सुंदरता से बसाया और ज्ञान का दरया बना दिया और उसकी ख्याति दूर दूर तक फैलने लगी और जौनपुर को शिराज़ ऐ हिन्द कहा जाने लगा | उसके दौर में बनी मस्जिदों और इमारतों के जिस अलग शैली का इस्तेमाल हुआ उसे शर्की-शैली कहा गया | शर्क़ी सल्तनत का सबसे शक्तिशाली शासक बना और उसने अपने दौर में अनेक लड़ाइयां भी लड़ीं और बुंदेलखंड ,संभल ,ग्वालियर इत्यादि को भी अपनने अधीन कर लिया | जौनपुर को शर्क़ी राज्य की राजधानी बनने का गौरव भी इब्राहिम शाह ने दिया |
।440 ई.में इब्राहिम शाह की मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी उसका बड़ा पुत्र महमृदशाह जौनपुर का शासक बना | महमूदशाह ने लगभग 20 वर्षतक शासन किया वह निर्माण कार्य के प्रति अपने; प्रेम के लिए
प्रसिद्ध था । उसने. जौनपुर के आस-पास अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया ।
।457 ई. में उसकी मुत्य हो गई और उसका पुत्र मुहम्मद शाह जौनपुर के तख्त पर आसीन हुआ | उसने बहलोल लोदी से चालाकी पूर्ण संधि करके अपने राज्य क्षेत्र को बहलोल लोदी की तरफ से सुरक्षित कर लिया|
उसने अपने सम्बन्ध अपने भाई हुसैनशाह के साथ अच्छे नहीं थे जिससे गृहकलह उत्पन्न हो. गया । हुसैनशाह ने अपनी माता बीबी राजे के सहयोग से विद्रोह कर स्वयं को, कन्नौज का शासक घोषित कर दिया और भागते हुए मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गयी और उनकी कब्र डाला मऊ में स्थित है |
हुसैनशाह ने शर्की-सल्तनत की बागडोर सम्भाली । उसने बहलोल लोदी से. संधि कर लिया और वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित कर लिया । दिल्ली की ओर से. सुरक्षित होकर उसने उड़ीसा पर आक्रमण किया और वहाँ से राजकर प्राप्त किया। बाद में साम्राज्य विस्तार के मोह में संधि का उल्लंघन कर उसने ।473 ई. में दिल्ली पर उस समय आक्रमण कर दिया, जब लोदी राजधानी से बाहर था | बहलोल लोधी ने इस आक्रमण को गंभीरता से लिया और हुसैन शाह को पराजित करते हुए मुबारक शाह लोहनी को ।482 ई. में जौनपुर का गवर्नर नियुक्त किया | हुसैन शाह शार्की ने कई बार कोशिश की अपना राज्य वापस पाने की लेकिन अंत की उसकी मृत्यु हो गयी और इसी के साथ शर्क़ी वंश का 85 वर्ष के गौरवशाली राज्य का अंत हो गया |
बहलोल लोदी ने ।486 ई. में अपने पुत्र बारबकशाह को जौनपुर का शासक बनाया | 1488 ई. में बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद ।7 जुलाई, ।489 को बहलोल लोदी का पुत्र सिकन्दर लोदी दिल्ली का बादशाह बना | लोधी शासकों के अधीन आने के बाद जौनपुर की स्थापत्य कला को, बहुत ही क्षति पहुंची और जौनपुर फिर से एक खंडहरों और मक़बरों का शहर बन के रह गया | सन् ।482 से ।525 ई. तक लोदी वंश का जौनपुर पर आधिपत्य रहा | 20 अप्रैल, 1526 ई. को बाबर ने पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी को पराजित किया और इब्राहिम लोदी मारा गया। बाबर के पुत्र हुमायूं ने अपने पिता से जौनपुर पर आक्रमण करने की अनुमति प्राप्त कर जौनपुर पर अपना आधिपत्य जमा लिया। 29 जनवरी, ।530 को बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूं उत्तराधिकारी बना
और हिन्दू बेग को जौनपुर का शासक निय॒कत किया। हिन्दू बेग की मृत्यु के बाद उसके पुत्र बाबा बेग जलायर को जौनपुर का शासक नियुक्त किया।
26 जून, ।539 को हुमायूं अपने प्रतिध्वंदी शेरशाह से हार गया और बाबा बेग जलायर ने जौनपुर का शासन शेरशाह के हवाले कर दिया | शेरशाह चूँकि जौनपुर का ही पढ़ा हुआ था उसे जौनपुर से प्रेम था शायद इसलिए शेरशाह के
शासनकाल में जौनपुर में शान्ति स्थापित रही तथा उसने यहाँ कई जनहितकारी कारय भी किए। ।545 ई. में शेरशाह का देहान्त हो गया|
शेरशाह की मृत्यु के बाद हुमायूं ने एक बार फिर से कोशिश की और जौनपुर को अपने क़ब्ज़े में ले लिया और अली कुली खां को जौनपुर का शासक नियुक्त कर दिल्ली चला गया|
27 जनवरी, ।556 में हुमायूं की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अकबर ।2 वर्ष, की अवस्था में भारत का बादशाह बना |
। इसी बीच अली कुली खां ने विद्रोह कर दिया 5 जुलाई, ।56। को अकबर मुनईम खां के साथ विद्रोह के दमन हेतु आगरा से; जौनपुर की ओर प्रस्थान किया। लेकिन खान जमां अली कुली खां ने इलाहाबाद के कड़ा नामक स्थान पर अकबर को सुन्दर उपहार एब्नं हाथी भेंट किए और अकबर ने खुश होक सम्पूर्ण, क्षेत्र उसी के अधीन रहने दिया और अगस्त, ।56। को आगरा लौट गया|
अली कुली खां ने ।564 ई. में दूसरी बार विद्रोह किया लेकिन इसबार भी अकबर ने उससे मिलने के बाद उसे माफ़ कर दिया लेकिन शीघ्र ही अली कुली खां ने तीसरी बार विद्रोह कर दिया। इस बार अकबर ने 6 मई, ।567 को. जौनपुर आके 9 जून, ।567 को कड़ा के निकट फतेहपुर परसोकी में हुए युद्ध में खानजमां अली कुली खां उसे सजा दी और खानजमां अली कुली खां मारा गया | अकबर ने शासक की बागडोर मुनईम खां को सौंप दी और दिल्ली चला गया |
इसी के साथ अकबर बादशाह का जौनपुर के प्रति मोह भाग हो गया और उसने अल्लाहाबाद का रुख किया |
।576 ई. में मुनईम खां की मृत्यु के बाद हुसेन कुली खां जौनपर का शासक नियुक्त हुआ । ।579 ई. में हुसेन की मृत्यु के बाद मुजफ्फर खां शासक नियुक्त हुआ परन्तु वह भी ।580 ई. में विद्रोहियों द्वारा मार डाला गया। अकबर ने तरसन खां को जौनपुर का जिलेदार नियुक्त किया ।
।584 ई. में तर्सन खां की मृत्यु के बाद ।590 ई. तक जौनपुर में कोई सूबेदार नियुक्त नहीं हुआ। अब्दुर्शहीम खानखाना को एक वर्ष के लिए जौनपुर का शासक नियुक्त किया गया परन्तु वे जौनपुर किसी कारणवश न आ सके
अकबर द्वारा श्की राज्य की राजधानी जौनपुर से इलाहाबाद परिवर्तित कर दिए जाने से जौनपुर का महत्व घटता गया । 25 अक्टूबर, ।605 ई. को, अकबर की मृत्यु के बाद जौनपुर की व्यवस्था और भी दयनीय हो गयी |
अब जौनपुर न तो, राजधानी रही और न ही शासन-केन्द्र बल्कि जौनपुर से मात्र मालगुजारी वसूल होती रही और उसे इलाहाबाद के शासक के पास भेजा जाता रहा
एक छोटे से विद्रोह के कारन और्णग़ज़ेब जौनपुर में आया और विद्रोह ख़त्म कर के चला गया | औरंगजेब की मृत्यु के बाद सिम्बर ।7॥9 ई. में मुहम्मद शाह दिल्ली का बादशाह बना और उसने जौनपुर बनारस, चुनार एबं गाजीपुर के क्षेत्र नवाब मीरमर्तना खां को सौंप दिए तथा ये क्षेत्र इलाहाबाद के अधीन हो गए |
अवध के नवाब सआदत अली खां ने जौनपुर बनारस, चुनार एबं गाजीपुर को मीर मुर्तना खां से इस शर्त, पर ले लिया कि सात लाख रुपया वार्षिक्र मीर मुर्तना खां को मिलता रहेगा| उसके बाद सआदत खां ने यह क्षेत्र आठ लाख रुपया वार्षिक पर मीर रुस्तम अली को सौंप दिया| ।737 ई.में सआदत अली खां ने; अवध को नवाब सफदर जंग को सौंप दिया
।
।750 ई. में फर्रुवाबाद के नवाब अहमद खां बंगश ने सफदर जंग को पराजित किया। अहमद खां बंगश ने. जौनपुर के शेर जमां खां की पुत्री सेव िवाह किया और शेर जमां खां के भतीजे साहब जमां खां को जौनपुर, वाराणसी और चुनार का फौजदार नियुक्त किया | साहब जमां खां ने बलवन्त सिंह को पराजित कर जौनपुर के किले पर अधिकार कर लिया । ।752 ई. में एक समझौते के द्वारा बलवन्त सिंह को क्षमा कर उसके क्षेत्र पुनः उसे इस शर्त, पर सौंप दिए गए कि वह 2 लाख अतिरिक्त मालगुजारी देगा
सन् ।764 ई. में जौनपुर तथा बनारस ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथ में आ गया क्यूंकि बक्सर युद्ध में कम्पनी विजयी रही । 20 जनवरी, ।765 ई. को मेजर फ्लेचर के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना नेज ौनपुर के किले पर अधिकार कर लिया । अंग्रेजों नेब लवन्त सिंह को इस क्षेत्र का प्रशासन सौंप दिया।23 अगस्त, ।770 ई. को. बलवन्त सिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र चेत सिंह उत्तराधिकारी हुआ | 2। मई , ।775 की खंधि के अनुसार आसेफुद्दौला को बनारस सूबे सहित इस क्षेत्र को कम्पनी को सौंपना पड़ा और ।5 अप्रैल, ।776 को चेत सिंह को यह क्षेत्र रेजीडेल्ट फुसिस फोक के नियंत्रण में रखते हुए प्रदान किया गया।
कार्नवालिस ने जुलाई, ।787 ई. में डंकन को बनारस का रेजीडेन्ट नियुक्त किया। सन् ।857 में अंग्रेजन के खिलाफ विद्रोह के साथ जौनपुर जनपद ने एक बार फिर से आज़ादी का बिगुल बजा दिया | आज़ादी की लड़ाई में जौनपुर के महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद जौनपुर बदहाली की तरफ बढ़ता रहा और अंत में आज यह " ख़ास से आम "
बन के रह गया |
लेखक एस एम् मासूम
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बोलते पथ्थरों का शहर जौनपुर
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