जानिए जौनपुर का मशहूर इत्र अब कहाँ मिलता है ?
जौनपुर का इत्र बहुत मशहूर है लेकिन यह जौनपुर में अब विलुप्त होने की कगार पे हैं | शर्क़ी बादशाओं ने इस इत्र को बहुत दिया और इसे कन्नौज से उठा के जौनपुर ले आय | जौनपुर में कभी बेला चमेली और केवड़े की पैदावार बहुत अधिक थी और गुलाब और खस खस की जड़ें गाज़ीपुर से लायी जाती थी |
कन्नौज में तो अभी गुलाब जूही चमेली के फूल बोये जाते हैं और कुछ बड़े व्यापारी आज भी इत्र पैदा करते हैं लेकिन जौनपुर में यह इत्र का बाजार अंतिम सांसें ले रहा है |
आज कृत्रिम इत्र का ज़माना है जिसकी खुशबु बाद कुछ मिनट या घंटों में सिमट के रह जाती है जबकि यह जौनपुरी या कन्नौज के इत्र की महक हफ़्तों एक बार लगा लेने पे नहीं जाती थी इसीलिये शर्क़ी और मुग़ल बादशाह इत्र को बहुत पसंद करते थे |
जिस प्रकार लकड़ी पे पके खाने का मुक़ाबला मइक्रोववे पे पके खाने से नहीं किया जा सकता उसी प्रकार असल जौनपुरी इत्र का मुकबला आज के कृत्रिम इत्र से नहीं किया जा सकता |
मंहगा होने के कारण जितना इत्र बनता भी है तो वो जौनपुर के बाज़ारों की जगह मुंबई और विदेशों की की बाज़ारों में बिकता है जहां उसकी सही क़ीमत आसानी से मिल जाय करती है |
जौनपुर का मशहूर इत्र जिसका ज़िक्र विध्यापति की काव्य रचना में भी हुआ है | जौनपुर कोतवाली के पास कि नवाब युसूफ रोड जो कभी हमेशा इत्र कि खुशबु से महका करती थी आज सुनसान दिखती है | इक्का दुक्का इत्र कि दुकानें अभी भी दिख जाया करती है |
कुछ वर्ष पहले नवाब युसूफ रोड पे स्थित इत्र की एक दूकान पे पहुँच और वहाँ पे बैठे जनाब ज़कारिया साहब से इत्र और चमेली के तेल के बारे में जानकारी हासिल की | ज़कारिया साहब का कहना था कि असली इत्र अब बहुत मंहगा होता जा रहा है इसलिए अब वो बनाया भी कम जाता है लेकिन बाहर के मुल्कों में इसकी आज भी खपत अच्छी है |
आप भी लें जनाब ज़कारिया साहब से जौनपुर के इत्र और चमेली के तेल के बारे में कुछ जानकारी |
कितने दुःख की बात है की पूरी दुनिया में सुगंध का व्यापार हर वर्ष बढ़ता जा रहा है लेकिन जौनपुर का इत्र का व्यापार अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है रहा है |
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