ऐतिहासिक धरोहरों का उजड़ा चमन आज भी जौनपुर बन सकता है सैलानियों के आकर्षण का केंद्र | एस एम् मासूम
महर्षि यमदग्निपुरम पुरम की तपोस्थली व शर्की शासनकाल में ८५ वर्ष शर्क़ी राज्य की राजधानी रहा जौनपुर की पहचान कहीं खो सी गए हैं जबकि यहां की तमाम धरोहरें अपना गौरवशाली इतिहास बयां कर रही है और आवाज़ दे रही हैं की आज भी अगर जौनपुर की तरफ ध्यान दिया गया और यहां की धरोहरों को बचाने का प्रत्न किया जाय तो पर्यटन की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण शहर साबित होगा | शैलानियों को आकर्षित करने के लिए जिले में अनगिनत धरोहरों के साथ तमाम मशहूर तीर्थ स्थल है |
फिरोजशाह तुगलक के बसाय इस शहर में इब्राहिम शाह शर्की के काल को इस शहर का स्वर्णिम दौर कहा जा सकता है और इसी दौर में यहां के खानकाहें और मदरसे विश्व शिक्षा के केंद्र बन गए व अरबी फारसी व उर्दू पढ़ने के लिए पूरे विश्व से यहां लोग आने लगे जिससे यह भारतीय शिक्षा व सभ्यता का केंद्र बन गया।
1394 ई. में फ़िरोज़शाह ने ख्वाजा जहां मालिक सर्वर को कन्नौज से, बिहार तक फैले; हुए एक विशाल क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त किया गया और इसका शासन केन्द्र जौनपुर बना |फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ की मृत्यु के बाद जब दिल्ली के शासक जब निर्बल हो गए तो सुल्तान ख्वाजा जहाँ ने स्वयं को, स्वतंत्र घोषित किया और 1394 ई. में 'शर्की-वंश' की स्थापना की |
1402 ई. में मुबारक शाह की मृत्यु हो गई और उसका भाई इब्राहिम शाह 1402 में जौनपुर का शासक बन गया | उसने लगभग 39 वर्ष, तक राज्य किया और जौनपुर को सुंदरता से बसाया और ज्ञान का दरया बना दिया और उसकी ख्याति दूर दूर तक फैलने लगी और जौनपुर को शिराज़ ऐ हिन्द कहा जाने लगा | उसके दौर में बनी मस्जिदों और इमारतों के जिस अलग शैली का इस्तेमाल हुआ उसे शर्की-शैली कहा गया | शर्क़ी सल्तनत का सबसे शक्तिशाली शासक बना और उसने अपने दौर में अनेक लड़ाइयां भी लड़ीं और बुंदेलखंड ,संभल ,ग्वालियर इत्यादि को भी अपनने अधीन कर लिया | जौनपुर को शर्क़ी राज्य की राजधानी बनने का गौरव भी इब्राहिम शाह ने दिया |
।440 ई.में इब्राहिम शाह की मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी उसका बड़ा पुत्र महमृदशाह जौनपुर का शासक बना | महमूदशाह ने लगभग 20 वर्षतक शासन किया वह निर्माण कार्य के प्रति अपने; प्रेम के लिए
प्रसिद्ध था । उसने. जौनपुर के आस-पास अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया ।
।457 ई. में उसकी मुत्य हो गई और उसका पुत्र मुहम्मद शाह जौनपुर के तख्त पर आसीन हुआ | उसने बहलोल लोदी से चालाकी पूर्ण संधि करके अपने राज्य क्षेत्र को बहलोल लोदी की तरफ से सुरक्षित कर लिया|
उसने अपने सम्बन्ध अपने भाई हुसैनशाह के साथ अच्छे नहीं थे जिससे गृहकलह उत्पन्न हो. गया । हुसैनशाह ने अपनी माता बीबी राजे के सहयोग से विद्रोह कर स्वयं को, कन्नौज का शासक घोषित कर दिया और भागते हुए मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गयी और उनकी कब्र डाला मऊ में स्थित है |
हुसैनशाह ने शर्की-सल्तनत की बागडोर सम्भाली । उसने बहलोल लोदी से. संधि कर लिया और वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित कर लिया । दिल्ली की ओर से. सुरक्षित होकर उसने उड़ीसा पर आक्रमण किया और वहाँ से राजकर प्राप्त किया। बाद में साम्राज्य विस्तार के मोह में संधि का उल्लंघन कर उसने ।473 ई. में दिल्ली पर उस समय आक्रमण कर दिया, जब लोदी राजधानी से बाहर था | बहलोल लोधी ने इस आक्रमण को गंभीरता से लिया और हुसैन शाह को पराजित करते हुए मुबारक शाह लोहनी को ।482 ई. में जौनपुर का गवर्नर नियुक्त किया | हुसैन शाह शार्की ने कई बार कोशिश की अपना राज्य वापस पाने की लेकिन अंत की उसकी मृत्यु हो गयी और इसी के साथ शर्क़ी वंश का 85 वर्ष के गौरवशाली राज्य का अंत हो गया |
उस दौर की जौनपुर का शाही किला, अटाला मस्जिद, झंझरी मस्जिद, खालिस मुख्लिस मस्जिद ,शाह का पंजा का निर्माण कराया गया। इसके अलावा शाही पुल, बर्गुजर पुल्ल , लाल दरवाजा, महर्षि यमदग्नि तपोस्थल, सहित काफी ऐतिहासिक धरोहरे आज भी यहां मौजूद है लेकिन मरम्मत के अभाव में इसकी हालत बहुत अच्छी नहीं है |
यह शर्क़ी राज्य जौनपुर ही था जिसने कभी सूफ़ियों को मान सम्मान दिया था और एक दौर में १४०० से अधिक पालकियां सूफियों की यहां निकला करती थी और उन सभी की कब्रें मकबरे आज जौनपुर में देखे जा सकते हैं |
यहां पर शीतला चौकियां धाम, मैहर मंदिर, मड़ियाहूं का दिनावा महादेव मंदिर, मुंगराबादशाहपुर का काली मंदिर, सिकरारा का अजोशी, केराकत का काली मंदिर, पूर्वाचल व देश तीर्थ यात्रियों को अपनी ओर आकृष्ट करते है | दुःख की बात है की इतना सबकुछ होने के बाद भी इस जौनपुर जिले को पर्यटन केंद्र घोषित नहीं किया जा सका है।
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