यह हुसैन कौन हैं जिनकी दुनिया दीवानी है?
कर्बला इराक़ में इमाम हुसैन का रौज़ा
असत्य पे सत्य की जीत की पूरी दुनिया में पहचान बन चुके हुसैन पैगंम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद के नाती थे और मुसलमानो के खलीफा हज़रत अली के बेटे थे | इमाम हुसैन की माँ हज़रत मुहम्मद की इकलौती बेटी फातिमा बिन्ते मुहम्मद थीं | इस घराने ने हमेशा दुनिया के हर मसले का हल शांतिपूर्वक तलाशने की कोशिश की यहां तक की लोग जब इनपे ज़ुल्म करते तो यह सब्र करते | इनका पैग़ाम था समाज में जहां रहते हो वहाँ हक़ का साथ दो , इन्साफ से काम लो और जो अपने लिए पसंद करते हो वही दूसरों के लिए पसंद करो और दुनिया के हर धर्म के इंसानो के साथ नेकी करो मानवता का त्याग कभी मत करना |
जैसा की दनिया में होता आया है सत्य का परचम जहां लहराया की असत्य की राह पे चलने वालों को तकलीफ होते लगती है क्यों की उनको उनका वजूद ख़त्म होता दिखाई देने लगता है | ऐसा ही उस दौर के असत्य की राह पे चलने वालों लगता था और वे हज़रत मुहम्मद के इस घराने पे ज़ुल्म किया करते थे लोगों को उनके लिए भ्रमित क्या करते थे लेकिन इस घराने ने कभी सत्य का हक़ का साथ नहीं छोड़ा |
सन 61 हिजरी क़मरी को इराक़ के कर्बला नामी मरूस्थल में सत्य और असत्य के बीच निर्णायक लड़ाई हुयी थी जिसमें सत्य के महानायक इमाम हुसैन को उनके वफ़ादार साथियों के साथ असत्य के प्रतीक यज़ीद शासक की फ़ौज ने शहीद कर दिया। इमाम हुसैन अलैहिस्साल शहीद हो गए लेकिन उन्होंने यज़ीद जैसे अत्याचारी शासक का आज्ञापालन करने से इंकार कर दिया। उस समय से आज तक लोग मोहर्रम की 10 तारीख़ को इमाम हुसैन का ग़म मनाते आ रहे हैं।
कर्बला का युद्ध सदगुणों के सम्मुख अवगुणों और भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध था. कर्बला की घटना में यज़ीद की सिर से पैर तक शस्त्रों से लैस ३० हज़ार की सेना ने इमाम हुसैन (अ) और उनके 72 वफ़ादार साथियों को घेर लिया और अन्तत: सबको तीन दिन भूखा और प्यासा शहीद कर दिया | यज़ीद अपने इस ज़ुल्म की वजह से नफरत के क़ाबिल हो गया और हुसैन की याद आज १४४१ साल बाद भी हर उस शख्स के दिल में ज़िंदा है जिसके दिल में इंसानियत ज़िंदा है | आज आशूरा १० मुहर्रम के दिन पूरी दुनिया के लोग इमाम हुसैन की क़ुर्बानी को अपने अपने तरीके से याद करते हैं जिसमे केवल मुसलमान ही नहीं हर धर्म के लोग होते हैं क्यों की असत्य पे सत्य की जीत हर धर्म का सन्देश है |
राष्ट्र कवी मैथली शरण गुप्त और “कर्बला में कहा
अब सकुटुम्ब हुसैन ना जाते तो क्या करते ?
क्या यजीद की धर्म मान्यता सर पर धरते |
इमाम हुसैन ने एक सुंदर वास्तविकता का चित्रण किया और वह यह है कि जब भी अत्याचार व अपराध व बुराईयां मानव के समाजिक जीवन पर व्याप्त हो जाएं और अच्छाइयां और भलाइयां उपेक्षित होने लगें तो उठ खड़े होकर संघर्ष करना चाहिए और समाज में जीवन के नये प्राण फूंकने की कोशिश करनी चाहिए|
१० अक्टूबर ६८० के दिन कर्बला में इमाम हुसैन को यज़ीदी फ़ौज ने भूखा प्यासा शहीद कर दिया | आज इराक़ के कर्बला शहर में इमाम हुसैन का आलीशान रौज़ा उनके भाई और परिवार वालों के रौज़े के साथ बना हुआ है जहां श्रद्धालु पूरे वर्ष जाय करते हैं |
...एस एम् मासूम
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