"ताज़िया" का मुहर्रम में बहुत महत्व है और यह इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि देने का एक तरीक़ा है | एस एम् मासूम
मुहर्रम का चाँद होते ही इमाम हुसैन के चाहने वाले जगह जगह मजलिस (शोक सभाएं) करते ,अलम ताज़िया के जुलुस निकालते नज़र आने लगते हैं| १० अक्टूबर ६८० जो इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार १० मुहर्रम का दिन था इराक़ के एक सुनसान इलाक़े कर्बला में ज़ालिम यज़ीद की फ़ौज ने पैगम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके परिवार वालों के साथ घेर के भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया और हद यह थी की छे महीने के इमाम हुसैन के बेटे अली असग़र को भी पानी मांगने पे तीरों से शहीद किया गया | हर चौक इमामबाड़ों और घरों में इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी शहादत को याद करने के लिए ताज़िया रखा जाता है
ताज़िया क्या है इसे समझने के लिए इस बात समझना आवश्यक है की मुहर्रम का चाँद होते ही हर हुसैन का चाहने वाला इराक के शहर कर्बला जहां इमाम हुसैन दफन हैं और उनका रौज़ा बना हुआ है वहां जाना चाहता है और जब वो नहीं जा पाता तो वो जहाँ रहता है वहीँ पे इमाम हुसैन के रौज़े की नक़ल बना के चौक, इमामबाड़ों और घरों में रखता है और इमाम हुसैन की शहादत को याद करता है | इस रौज़े की गुम्बद नुमा नक़ल को ताज़िया कहा जाता है |
ताज़िये के अंदर इमाम हुसैन की क़ब्र की नक़ल बनी होती है और यह ताज़िया मुहर्रम का चाँद होते ही , इमामबाड़ों ,घरों और ख़ास करके चौक पे रखा जाता है और दस मुहर्रम को अपने अपने इलाक़े की कर्बला में वैसे ही दफ़्न कर दिया जाता है जैसे की घरों से किसी अपने को उसके इंतेक़ाल के बाद क़ब्रिस्तान ले जा के दफन किया जाता है | यह ताज़िया बांस और कागज़ से अधिकतर बनाया जाता है जिसकी तैयारी मुहर्रम के एक महीने पहले से शुरू हो जाती है | ताज़िये का आकार इलाक़ाई लोगों की पसंद और आवश्यकता के अनुसार हुआ करता है | यह ताज़िया इमाम हुसैन की क़ब्र और रौज़े की नक़ल और ताजियादारी हकीकत में कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है|
इस वर्ष हुसैन को चाहने वाले मुसलमान कोविड -१९ महामारी की रोकथाम के लिए दिए गए सरकारी दिशा निर्देश के अनुसार मुहर्रम मना रहा है लेकिन दुखी है की वो जैसे दिल खोल के ताज़ियादारी करना चाहता था इस वर्ष महामारी की वजह से नहीं कर सका |
एस एम् मासूम
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