विश्व धरोहर सप्ताह का आगमन जौनपुर में कुछ ठंडा सा दिखा जबकि जौनपुर में अनगिनत सांस्कृतिक , धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों को जगह जगह देखा जा सकता है | इस सप्ताह को मनाने का इतिहास कुछ भी हो, लेकिन हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम इन धरोहरों की शक्ल में अपने सांस्कृतिक, राजनीतिक, मूल्यों का इतिहास संरक्षित कर सकें और लोगों को इसके प्रति जागरूक कर सकें ।
भारत में पाया यह जाता है की जो शहर सहस्राब्द्रियों से आबाद हैं, वह किसी ने किसी नदी के किनारे हैं। जौनपुर एक महत्वपूर्ण नदी गोमती के तट पे बसा शहर है इस नदी को पहले आदि गंगा के नाम से भी जाना जाता रहा है |
जौनपुर में जगह जगह खुदाई में मिले अवशेषों और आज मौजूद इमारतों और खंडहरों से यह साबित होता है कि इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और यहाँ बौद्ध से ले के यमदग्नि ऋषि और मुग़ल नवाब और सूफियों का इतिहास आज भी जीवित है और यहाँ के समाज पे रीतिरिवाजों पे इसका असर आज भी देखा जा सकता है |
हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन ने इस बात को ध्यान रखते हुए हमारा जौनपुर टीम ने यह फैसला लिया की आज की नयी नस्लों को जौनपुर के इतिहास की सही जानकारी दी जाय | जौनपुर के सन जॉन स्कूल और संस्था भारत विकास परिषद् के सहयोग से "हमारा प्रयास बच्चे जाने जौनपुर का इतिहास " के परचम तले स्कूल के बच्चों को पूरे जौनपुर के मुख्य मुख्य ऐतिहसिक स्थलों की सैर करवाई और जौनपुर के उस इतिहास की जानकारी दी जो राजा दशरत के सकालीन युग से लेकर १८५७ की आजादी की लड़ाई तक की निशानियों को अपने आपमें समेटे हुए हैं |
बच्चों को इस पूरे टूर में जमैथा के जमदाग्नि आश्रम से ले कर शाही किले में मौजूद १८५७ की आजादी की लड़ाई तक के बारे में बताया गया | बच्चों ने इस इतिहास को नयी जानकारी के रूप में ग्रहण किया अंत में यह भी कहा सर हम हर ऐतिहासिक स्थाल की विस्तृत जानकारी भी लेना चाहते हैं और इसके लिए फिर से कभी समय मिले तो टूर पे हम सबको ले जाएँ |
जौनपुर के ऐतिहासिक स्थलों का यह टूर लाल दरवाज़ा मस्जिद से होता हुआ , खालिस मुखलिस मस्जिद, पांचो शिवाला , बड़ी मस्जिद ,शाही किला, अटाला मस्जिद , शाही पुल, २४३ वर्ष पुराने हनुमान और सत्य नारायण मंदिर ,गज सिंह मूर्ती देखता हुआ यमदग्नि ऋषि के आश्रम, परशुराम की जन्म स्थली जमैथा में ख़त्म हुआ |
भारत में पाया यह जाता है की जो शहर सहस्राब्द्रियों से आबाद हैं, वह किसी ने किसी नदी के किनारे हैं। जौनपुर एक महत्वपूर्ण नदी गोमती के तट पे बसा शहर है इस नदी को पहले आदि गंगा के नाम से भी जाना जाता रहा है |
जौनपुर में जगह जगह खुदाई में मिले अवशेषों और आज मौजूद इमारतों और खंडहरों से यह साबित होता है कि इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और यहाँ बौद्ध से ले के यमदग्नि ऋषि और मुग़ल नवाब और सूफियों का इतिहास आज भी जीवित है और यहाँ के समाज पे रीतिरिवाजों पे इसका असर आज भी देखा जा सकता है |
हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन ने इस बात को ध्यान रखते हुए हमारा जौनपुर टीम ने यह फैसला लिया की आज की नयी नस्लों को जौनपुर के इतिहास की सही जानकारी दी जाय | जौनपुर के सन जॉन स्कूल और संस्था भारत विकास परिषद् के सहयोग से "हमारा प्रयास बच्चे जाने जौनपुर का इतिहास " के परचम तले स्कूल के बच्चों को पूरे जौनपुर के मुख्य मुख्य ऐतिहसिक स्थलों की सैर करवाई और जौनपुर के उस इतिहास की जानकारी दी जो राजा दशरत के सकालीन युग से लेकर १८५७ की आजादी की लड़ाई तक की निशानियों को अपने आपमें समेटे हुए हैं |
बच्चों को इस पूरे टूर में जमैथा के जमदाग्नि आश्रम से ले कर शाही किले में मौजूद १८५७ की आजादी की लड़ाई तक के बारे में बताया गया | बच्चों ने इस इतिहास को नयी जानकारी के रूप में ग्रहण किया अंत में यह भी कहा सर हम हर ऐतिहासिक स्थाल की विस्तृत जानकारी भी लेना चाहते हैं और इसके लिए फिर से कभी समय मिले तो टूर पे हम सबको ले जाएँ |
जौनपुर के ऐतिहासिक स्थलों का यह टूर लाल दरवाज़ा मस्जिद से होता हुआ , खालिस मुखलिस मस्जिद, पांचो शिवाला , बड़ी मस्जिद ,शाही किला, अटाला मस्जिद , शाही पुल, २४३ वर्ष पुराने हनुमान और सत्य नारायण मंदिर ,गज सिंह मूर्ती देखता हुआ यमदग्नि ऋषि के आश्रम, परशुराम की जन्म स्थली जमैथा में ख़त्म हुआ |
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