नगर के कलीचाबाद में गोमती नदी के किनारे स्थित कुलीच खान का मकबरा मौजूद है जो बारादरी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके इतिहास के बारे में भी बहुत कम ही लोग जानते है। मुग़ल की यह ऐतिहासिक इमारत इस समय अपने अस्तित्व को बचाने की जंग लड़ रहा है। जौनपुर से लखनऊ आते जाते कटघरा के बाद बदलापुर पड़ाव के इलाके में एक वीरान इमारत गोमती नदी के किनारे दिखाए देती है जिसकी ओर अब लोगों का ध्यान कम ही जाता है | यह हकीकत में मुग़ल काल का बना हुआ कुलीच खान का मकबरा है और बहुत से इतिहासकार इसे सुलेमान खान का मकबरा भी कहते हैं जो की सच नहीं है || इन्ही कलीच खान के नाम पे इस इलाके का नाम कलीचाबाद भी पड़ा और आज भी इसी नाम से इस इलाके को जाना जाता है | कलीचाबाद से आपको दरिया गोमती पार करके पान दरीबा जाने के लिए नाव भी मिल जाती है और समय भी पांच मिनट लगता है जबकि इसी इलाके से पानदरीबा सड़क के रास्ते से जाने में २०-३० मिनट भी लग जाया करते हैं |
कुलीच खान अकबर बादशाह के समय में सूरत के किले के किलेदार थे जिन्हें शाहजहाँ के समय में जौनपुर का शासक बना के भेजा गया था | जौनपुर आने के बाद कुलीच खान से गोमती किनारे एक विराट महल बनवाना शुरू किया जो आज बारहदरी के नाम से कलीचाबाद इलाके में बदहाल हालत में मौजूद है |
इसके बनते समय की एक कहानी मशहूर है की जब इस स्थान की खुदाई शुरू हुयी और नीव डाली जाने लगी तो अन्दर से एक गुम्बद मिली और जब अधिक खुदाई के बाद लोग नीचे पहुंचे तो देखा गुम्बद के नीचे एक कोठरी है जिसमे ताला लगा हुआ है | लोगों को देख के ताज्जुब हुआ की उसमे एक बूढा आदमी पश्चिम की तरफ मुह कियी हुए आसन लगाय बैठा है | शोर शराबे से और ताला तोड़ने से वो घबराया और पूछने लगा की क्या राजा राम चन्द्र ने अवतार ले लिया ? और क्या सीता राम चन्द्र के पास वापस आ गयी ? लोगों ने कहा हाँ | फिर उसने पुछा क्या श्री कृष्ण ने अवतार लिया तो लोगों ने कहाँ हाँ उसे ४००० वर्ष बीत गए | फिर उसने पुछा क्या हजरत मुहम्मद ने मक्के में जन्म लिया क्या तो लोगों का जवाब था हाँ 1100 वर्ष बीत गए |
और इसी प्रकार से बहुत से अन्य धर्म से जुड़े सवाल भी किये फिर पुछा क्या गंगा बह रही हैं लोगों ने बताया हाँ तो उसने कहा मुझे बाहर निकालो और बाहर आने पे उसने नमाज़ पढ़ी और 6 महीने बिना किसी से बात चीत किये जीवित रहा और फिर जीवन त्याग दिया | यह इतिहास की किताबो में दर्ज है |
गोमती नदी के किनारे बनी बारादरी की सुन्दरता आज भी महसूस की जा सकती है जो आज बहुत ही बदहाल हालत में हैं और इसके बाहरी इलाके में एक शमशान घाट बन चूका है और इस बारादरी के खंडहरों पे उगी घास और पीपल के पेड़ मिलजुल के इसे एक भुतही इमारत के रूप देते जा रहे है| यहाँ ताश खेलने वाले और शराबियों को भी अक्सर देखा जा सकता है | आज से 2०-22 साल पहले जब मैं यहाँ आता था तो इस बारादरी का हाल ऐसा नहीं था | इसकी सुन्दरता आज भी मुझे याद है | कहा जाता है कि ताजमहल जमुना नदी के किनारे बनाने का ख्याल इसी इमारत की खूबसूरती देखे के आया |यह बात कितनी सच है यह तो नहीं मालूम लेकिन इस इमारत और ताजमहल में बहुत से बातें एक जैसी ही हैं | इस भवन में नाप-जोख कर कुल बारह दरवाजे हैं और इसके अंदर की नक़्क़ाशी बहुत ही सूंदर है जो अब भी जगह जगह पे दिखाई देती है | इस बारादरी के अंदर दो क़ब्रें दिखती हैं जिनके नीचे खुदाई कर दी गयी हैं शायद किसी तलाश में इसलिए इस बारहदरी के अंदर बने मक़बरे के अंदर तहखाना नज़र आता है |
हमारे मित्र डॉ मनोज मिश्रा जी ने भी अपने एक लेख में लिखा कि यह राजवंश की रानियों का स्नानागार था या फिर सदानीरा गोमती से सटा होने के कारण रनिवास की रानियाँ यहाँ प्राकृतिक छटा का अवलोकन करने आती थी .जो भी हो लेकिन आश्चर्य है कि जौनपुर के इतिहास लेखन में भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। दन्त कथाओं में कहा जाता है कि इस भवन के अन्दर बीचो -बीच एक बहुत गहरा कुआँ हुआ करता था और भवन के गुम्बज के बीचो-बीच सोनें का एक घंटा बंधा था, जिसे निकालने के चक्कर में एक चोर मगरगोह की मदत से घंटे तक पहुच गया था लेकिन घंट का वजन मगरगोह नहीं सभाल सका और घंट समेत कुएं में जा गिरा था,कुएंको इसके बाद समाप्त कर दिया गया। इस भवन में नाप-जोख कर कुल बारह दरवाजे हैं |
यह बरहदरी भूतों का अड्डा तो नहीं है लेकिन इसकी हालत बहुत ही बदहाल है और इसकी देखरेख पुरातत्व विभाग क्यूँ नहीं करता यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आयी| आप भी देखें इसकी नयी और पुरानी तसवीरें और आज भी यहाँ का नज़ारा बहुत ही मनमोहक लगता है | इसकी गोमती में बनती परछाईं आपको हिन्दुस्तान के नक़्शे की याद अवश्य दिलाएगी |
कॉपीराइट
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
संचालक
एस एम् मासूम