शीतला चौकिया धाम जौनपुर
नवरात्र के आने तक शीतला चौकिया धाम जौनपुर में पूर्वाचल के विभिन्न जनपदों के लाखों श्रद्धालु दर्शन.पूजन के लिए आते हैं द्य माता शीतला को नव दुर्गा की छोटी बहन के रूप में जाना जाता है। पुराणों में भी इसका विशेष उल्लेख है। यह एक पीठ के रूप में पूर्वाचल के लोगों में मशहूर है। यही कारण है कि पूर्वाचल के गोरखपुरए देवरियाए गाजीपुरए मऊए आजमगढ़ए सुलतानपुर समेत विभिन्न जनपदों से नवरात्र में भारी संख्या में महिलायेंए पुरुषए वृद्धए नौजवान आते हैं। यहां उपनयनए मुण्डनए जनेऊ संस्कार के साथ विवाह भी सम्पन्न होते हैं। मनौती के अनुरूप लोग कड़ाही करके लप्सी और सोहारी भी यहां मां के चरणों में अर्पित करते हैं |
पूरे पूर्वाचल में आस्था व विश्वास के केन्द्र के रूप में जौनपुर के मां शीतला देवी चैकिया धाम का महत्व ही निराला है। सात देवियों में मां शीतला सबसे छोटी है लेकिन इनका स्थान इन सभी मे सबसे प्रमुख है। मां के दर्शन के लिये हर सोमवार व शुक्रवार को युं तो भारी भीड़ होती है, लेकिन अगर मौका नवरात्र ाका हो तो श्रद्धालुओ का तांता देर रात तक मां के दर पर नजर आता है। कहा जाता है कि यहां के दर्शन के बाद ही मैहर देवी, वैष्णों देवी व विध्यवासिनी देवी का दर्शन सफल होता है।
जौनपुर मंे राजकीय राजमार्ग संख्या पांच पर स्थित मां शीतला देवी का भव्य मंदिर और तालाब है। यूं तो पूरे वर्ष यहां दर्शनार्थियों का हुजूम देखा जा सकता है, लेकिन शारदीय नवरात्र के समय लाखों भत्क दूर-दराज से आकर मां का दर्शन करते है। वैसे पूरे भारत में मां शीतला देवी के मंदिर है लेकिन चैकिया धाम मंदिर का महत्व अलग है। अन्य मंदिरों से अलग इसे शत्कि पीठ का दर्जा प्राप्त है। नवरात्र के समय से ही हाथो में नारियल व चुनरी का चढ़ावा लिये दर्शनार्थियों की भारी भीड़ हो जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां शीतला सात देवी बहनों में सबसे छोटी हैं। लेकिन इनका स्थान सभी में सबसे ऊंचाा है। यही वजह है कि यहां आने के बाद ही अनय देवीयों का दर्शन करने जाते है।
वरिष्ट पत्रकार श्री राजेश श्रीवास्तव जी का कहना है कि पूर्वाचंल के लोगो का मुख्य आस्था का केद्र माॅं शीतला चैकियां धाम का कही कोई ठोस प्रमाण या इतिहास नही मिलता। इतिहासकारों ने मंदिर की बनावट और तालाब के अधार पर आदेषा जताते हुए लिखा हैं कि यह मंदिर काफी प्राचीन हैं। षिव और शक्ति की उपासना प्राचीन भारत के समय से चली आ रही हैं। इसी अधार पर माना जाता हैं कि हिन्दू राजाओं के काल में जौनपुर का अहीर शासकों के हाथ में था। जौनपुर का पहला शासक हीराचंद्र यादव माना जाता हैं। माना जाता हैं कि चैकियां देवी का मंदिर कुल देवी के रूप में यादव या भरो द्वारा निर्मित कराया गया लेकिन भरों की प्रवृत्ति को देखते हुए लगता हैं इस मंदिर के निर्माण भरो ने ही कराया होगा। भर अनार्य थे। अनार्यो में शक्ति और षिव पूंजा होती थी। जौनपुर में भरो का अधिपत्य भी था। पहले इस मंदिर की स्थापना चबूतरे पर की गयी होगी, संभवतः इसी कारण से इन्हे चैंकियां देवी कहा जाता हैं। शीतलता और आनन्दायनी की प्रतीक मानी जाती हैं। इसी लिए इनका नाम शीतला पड़ा। ऐतिहासिक प्रमाण इस बात के गवाह है कि भरों तालाब बनवाने की प्रवृत्ति थी इस लिए उन्होने शीतला मंदिर के पास तलाब का भी निर्माण कराया गया। इस दरबार में सोमवार और शुक्रवार को तथा नवरात्री में दिन भर श्रध्दालु मत्था टेकते हैं।
जय हो मता सितला कि
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