जौनपुर: इतिहास, खान-पान और प्रसिद्ध इमरती
जौनपुर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कभी शार्की राज्य की राजधानी रहा जौनपुर अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए आज संघर्ष करता दिखाई देता है। जौनपुर का ईसा पूर्व इतिहास अत्यंत समृद्ध रहा है। यह क्षेत्र महाजनपद काल से लेकर मौर्य, शुंग और गुप्त काल तक एक महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र बना रहा। मध्यकाल में फिरोज़ शाह तुगलक और शर्की शासकों ने इसे विकसित किया, जिससे यह एक प्रमुख सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। जौनपुर की शर्की वास्तुकला अपनी विशिष्ट पहचान के लिए जानी जाती है।
जौनपुर का पारंपरिक खान-पान
यहां के खान-पान की बात करें तो शीरमाल, शाही टुकड़ा, पुलाव, कोरमा, कुबूली जैसे व्यंजन कभी अपनी अनूठी पहचान रखते थे। लेकिन इन्हें बनाने वालों की कमी और बढ़ती लागत के कारण ये व्यंजन अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। जौनपुर की प्रसिद्ध मूली, जो कभी 6 फीट तक लंबी हुआ करती थी, अब दुर्लभ हो गई है, और मक्के की मिठास भी लोगों की यादों में धुंधली पड़ती जा रही है।
जौनपुर का इत्र और गुलकंद, जो कभी हर गली-मोहल्ले में बनते थे, अब गिनती की कुछ जगहों पर ही सीमित रह गए हैं और अधिक कीमत के कारण महानगरों और विदेशों तक ही सीमित हो गए हैं। कन्नौज का इत्र और फैजाबाद से आई इमरती अब जौनपुर की पहचान का हिस्सा बन चुके हैं। जौनपुर की इमरती जौनपुर वासियों की पहली पसंद हमेशा रही लेकिन विश्व में अपनी अलग पहचान नहीं बन पा रही थी इस वर्ष जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती को मार्च 2024 में भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्रदान किया गया है| इसका फायदा यह होगा की अंतरराष्ट्रीय बाजार में विशेष पहचान अब इसे मिल सकेगी|
जौनपुर की पहचान बनी 'इमरती'
जौनपुर अपनी पुरानी पहचान को भुलाते हुए अंग्रेजों की पसंदीदा इमरती को अपनी नई पहचान बना रहा है। जौनपुर में जब भी कोई नेता आता है, तो जौनपुर के इतिहास और संस्कृति की बजाय इमरती की चर्चा करता है। फिर भी, यह संतोषजनक है कि कम से कम जौनपुर की इत्र और इमरती को लेकर चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जौनपुर के इत्र उद्योग और इमरती को ब्रांडिंग करने का आश्वासन देकर जौनपुरवासियों को उम्मीदों से भर दिया है।
जौनपुर की प्रसिद्ध 'इमरती'
बेनीराम देवी प्रसाद की प्रतिष्ठित दुकान की बनी इमरती की लज्जत 170 वर्षों से बरकरार है। इसके स्वाद के मुरीद पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर समेत कई दिग्गज नेता और बड़े अधिकारी रहे हैं। इसकी सुगंध न केवल जौनपुर बल्कि देश के कोने-कोने तक पहुंच चुकी है।
जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मूल रूप से जौनपुर के कलीचाबाद निवासी बेनीराम फैजाबाद में पोस्टमास्टर थे। एक बार उन्होंने अपने अंग्रेज अधिकारी को फैजाबाद में बनी इमरती परोसी, जिसने इसकी खूब तारीफ की। उस अंग्रेज ने बेनीराम से कहा कि वे अपने वतन जौनपुर लौट जाएं और वहां दुकान खोलें।
शाही पुल के पास बेनीराम देवी प्रसाद और उनके भाईयों ने दुकान स्थापित की। उस समय गोमती नदी के रास्ते व्यापार होता था, जिससे यहां लोगों की भीड़ बनी रहती थी। धीरे-धीरे दुकान का विस्तार हुआ और 1855 में इसका औपचारिक पंजीकरण हुआ।
जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती की खासियत
शुद्ध देशी घी और देशी चीनी से बनाई जाती है।
इसे लकड़ी की आंच पर पकाया जाता है।
आज भी इमरती के लिए सिलबट्टे पर पीसी गई उड़द की दाल का उपयोग होता है।
इसका स्वाद गर्म और ठंडे दोनों रूपों में समान रहता है।
10 दिनों तक खराब नहीं होती, जिससे इसे विदेशों तक निर्यात किया जाता है।
बलिया से विशेष देशी चीनी मंगाई जाती है, जिससे इसकी पारंपरिक मिठास बरकरार रहती है।
कभी आप जौनपुर आएं तो ओलन्दगंज से ताज़ी इमरती का स्वाद चखना न भूलें।
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