जौनपुर के विद्यालयों और कॉलेजों में धरोहरों को लेकर सेमिनार आयोजित किए जाएं ।
जौनपुर: ऐतिहासिक धरोहरों का शहर, लेकिन पर्यटन की दौड़ में पीछे
जौनपुर की विश्वस्तर पे सोशल मीडिया , वेब पोर्टल्स ब्लोग्स , जौनपुर की धरोहरों के शैक्षणिक भ्रमण और व्याख्यान द्वारा पहचान करवाने वाले जौनपुर निवासी एस एम् मासूम से बात चीत में उन्होंने इस बात की चिंता दिखाई की जौनपुर पर्यटन की दौड़ में अभी भी बहुत पीछे है । उन्होंने बताया उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक शहर जौनपुर अपनी समृद्ध विरासत और शार्की स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। लगभग 1000 साल पुरानी इस विरासत में शाही किला, अटाला मस्जिद, चार अंगुल मस्जिद, झंझरी मस्जिद, शाही पुल, शाह फिरोज का मकबरा, बड़ी मस्जिद, लाल दरवाजा, शीतला माता मंदिर, चाचकपुर गुरुद्वारा, सूफी संतों के मकबरे और कई अन्य धरोहरें शामिल हैं। बावजूद इसके, जौनपुर आज भी पर्यटन मानचित्र पर वह पहचान हासिल नहीं कर सका है, जिसका वह हकदार है।
14 वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक ने जौनपुर शहर की स्थापना की थी। इसके बाद शार्की शासकों के दौर में यह शहर एक प्रमुख सांस्कृतिक और स्थापत्य केंद्र बना। अटाला मस्जिद और झंझरी मस्जिद जैसे ऐतिहासिक स्थल उस युग की स्थापत्य कला के बेहतरीन उदाहरण हैं। लेकिन यह ऐतिहासिक पहचान अब समय के साथ धुंधली होती जा रही है।
जौनपुर ऐतिहासिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद पर्यटकों को आकर्षित करने में विफल रहा है। इसके पीछे कई करण हैं:बुनियादी सुविधाओं की कमी: ऐतिहासिक स्थलों के आसपास पार्किंग की अनुपलब्धता और सुविधाओं का अभाव।,अतिक्रमण और अनियोजित निर्माण, धरोहरों के आसपास बेतरतीब निर्माण और अतिक्रमण ने उनकी सुंदरता को धूमिल कर दिया है। ,पर्यटन नीति का अभाव: स्थानीय प्रशासन और सरकार की तरफ से पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ठोस योजनाओं का अभाव। प्रचार-प्रसार की कमी: जौनपुर के ऐतिहासिक महत्व को सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से पर्याप्त रूप से प्रचारित नहीं किया गया।
अधिकतर पर्यटक वाराणसी से कुछ घंटों के लिए यहां आते हैं और फिर लौट जाते हैं। पर्यटन की संभावनाओं के बावजूद शहर पर्यटकों को रोक पाने में नाकाम साबित हो रहा है।
पर्यटन और रोजगार: संभावनाएं और चुनौतियां
पर्यटन के माध्यम से स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ा जा सकता है, लेकिन इसके लिए योजनाबद्ध प्रयासों की आवश्यकता है:
शैक्षणिक भ्रमण और जागरूकता अभियान: स्थानीय विद्यालयों और कॉलेजों में जौनपुर की धरोहरों को लेकर शैक्षणिक भ्रमण और सेमिनार आयोजित किए जाएं।
स्थानीय कला और सांस्कृतिक उत्सव: सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से जौनपुर की धरोहरों को प्रदर्शित किया जाए, ताकि लोग अपनी जड़ों को पहचान सकें।
पर्यटन मार्गों का विकास: प्रमुख स्थलों तक पहुंचने के लिए सड़कें सुधारी जाएं और सार्वजनिक परिवहन की सुविधाएं बढ़ाई जाएं।
डिजिटल प्रचार अभियान: सोशल मीडिया, वेबसाइट और अन्य डिजिटल माध्यमों से जौनपुर की ऐतिहासिक धरोहरों का प्रचार किया जाए।
जौनपुर की ऐतिहासिक धरोहरें केवल पत्थरों और खंडहरों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक समृद्ध इतिहास और संस्कृति की गवाह हैं। अगर इन्हें सहेजने और प्रचारित करने की दिशा में सरकार और स्थानीय प्रशासन ठोस कदम उठाए, तो यह शहर पर्यटन और आर्थिक विकास का केंद्र बन सकता है।
यह सवाल सिर्फ इतिहास और स्मारकों का नहीं, बल्कि हमारी विरासत को बचाने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का है। अगर सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो जौनपुर की यह धरोहरें फिर से अपने गौरवशाली मुकाम तक पहुँच सकती हैं।
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