Ustad Gulshan Bharti
Varun Mishra
कभी सुना है आपने कि कोई सिद्ध गायक राग दीपक गाए और फिर हज़ारों दीपक एक साथ जल उठें
या फिर ये सुना हो के किसी मलंग फकीर नें राग मेघ मल्हार गाया हो और बारिश हो गई हो।
सच है ऐसा होता है और आज के दौर में भी ये होता है
आप में से न जाने कितने लोगों ने इस तरह के करिश्माई संगीत और शुद्ध रागों के असर के बारे में सुना होगा या फिर हमारे बुजुर्ग जो दुनियां से जा चुके हैं या फिर किस्मत से आज भी हमारे बीच हैं,, उन्होंने ज़रूर ये किस्से कभी ना कभी आपको सुनाएं होंगे।
दोस्तों आज मैं अपनी आंखों देखा एक हाल आपके सामने बयां कर रहा हूं जिसे सुनकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पिछले बीस पच्चीस बरसों से ल़ख़नऊ में बारिश लगभग ना के बराबर होती है गर्मी का पारा दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है हमारा शहर ल़ख़नऊ धीरे धीरे एक ऐसे रेगिस्तान में तब्दील होता जा रहा है,, जिसकी कोई इंतहा नहीं।
आप में से बहुत लोगों को याद होगा कि पहले बारिशों की झड़ी लगती थीं, लगातार कई कई दिनों तक पानी बरसता रहता था और मौसम बेहद खुशगवार हो जाता था……. आज लगता है जैसे वो बरखा की ऋतुएं केवल बीते दिनों के खोए हुए सपनों की बातें रह गई हों…..
ख़ैर आज बारिश ना होने की बहुत सी वजहे हैं
जिसमें सबसे अहम वजह शहर के आसपास के हरे-भरे जंगलों का कट जाना है और बढ़ती आबादी के चलते शहरी विकास की आपाधापी में हमारे चारों तरफ कंक्रीट का एक बहुत बड़ा और विशाल जंगल उग आया है ….. सड़क के किनारे जो बड़े-बड़े हरे भरे दरख़्त हुआ करते थे वो सब के सब हमारे देखते-देखते न जाने कब के काट दिए गए…….
पहले हर एक गली मोहल्ले में पीपल, बरगद नीम, पाकड़ , फनस और लसोढ़े के पेड़ों के साथ ही साथ आम ,जामुन, बेल बढ़हेल,,कदंब, और गूलर आदि के वृक्षों की एक बड़ी तादात होती थी जिन पर सावन आते ही न जाने कितने झूले डाल दिए जाते थे,,,, शहर के चप्पे-चप्पे पर हरियाली की भरमार हुआ करती थी……. आखिर कहां गए वो सारे के सारे हरे भरे वृक्ष…. जी हां वो हमारी असीमित अभिलिप्सा की भेंट चढ़ गए…. तो फिर कहां से होंगी बारिशें।
इकझील नदियां पोखर तालाब सब के सब सूखते जा रहे हैं,,, भूगर्भ का जल स्तर लगातार नीचे बैठता जा रहा है ,,कुदरत की अनदेखी और लगातार प्रकृति का दोहन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति हमारी और सरकार की उदासीनता आज मौसम के इस प्रचंड बदलाव का कारण है।
किस्सा दरअसल ये है कि आज से लगभग कोई सोलह बरस पहले मेरे दोनों बेटे शांतनु और शाश्वत श्री दिनकर पांडे जी से संगीत की विधिवत शिक्षा ले रहे थे दोनों की गायन में रुचि थी इसके चलते मैं अपने दोनों बेटों को ल़ख़नऊ शहर के कई बड़े गुनी और दिग्गज उस्तादों की द्दयोढ़ी पर ले जाया करता था जहां वो गुनीजन हमें प्राचीन भारतीय संगीत की बारीकियों के बारे में बताया करते थे उन्हीं मशहूर उस्तादों में एक बड़े ही करिश्माई उस्ताद जनाब श्री गुलशन भारती साहब की बैठक में अक्सर जाना होता था तो एक दिन उस्ताद ने विशुद्ध राग और रागों के चमत्कारी प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए हमें कुछ सत्य घटनाओं से अवगत कराया जिसमें प्रमुखता से राग मेघ मल्हार का भी ज़िक्र हो रहा था जिसके प्रभाव का वर्णन वो बड़ी ही तन्मयता से कर रहे थे,,,,, मेरा छोटा बेटा जिसकी उम्र उस व़क्त लगभग पांच बरस की रही होगी वो बड़ी ही संजीदगी से उनकी बातों को सुन रहा था और बड़ी ही मासूमियत से इसके बारे में उनसे सवाल पूछता रहा और उस्ताद बड़े ही प्यार और धैर्य के साथ उसके सवालों का जवाब देते रहे।
जुलाई का महीना था और शदीद उमस से भरी हुई गर्मी पड़ रही थी,,, खुले आसमान पर चढ़ता सूरज सुबह से ही अंगारे बरसाने लगता था….. जिससे पूछो उसका हाल बेहाल नज़र आता था
एक दिन मुझे पता ही ना चला कि कब मेरे छोटे बेटे शाश्वत ने मेरी डायरी से नंबर देखकर उस्ताद गुलशन भारती जी को फोन किया और उनसे लगातार मेघ मल्हार गाने की ज़िद करने लगा…. और कहने लगा कि मैं जानता हूं कि आप मेघ मल्हार गाएंगे तो बारिश हो जाएगी…. उस दिन न जाने कुदरत क्या नज़ारा दिखाना चाह रही थी…. आखिर उस्ताद ने मेरे बेटे को बारिश होने का आश्वासन दे ही दिया……दोपहर के 2:00 बज रहे थे मैं किसी काम से बाहर गया था लौटकर आया तो पता चला कि बेटे नें उस्ताद को फोन किया था…..
बेटे की इस हरकत पर मैं थोड़ा शर्मिंदा था और उस्ताद से माफी मांगने की गरज से मैंने उन्हें फोन किया तो उनके किसी शिष्य ने फोन उठाया
और बताया कि उस्ताद कई घंटों से मां सरस्वती की मूर्ति के आगे साधना रत हैं ऐसे में उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता है….. पीछे से आ रही तानपुरे के स्वर के साथ उस्ताद की जादुई आवाज़ राग मेघ मल्हार में ही डूबी हुई थी……
दोपहर करीब 3:00 बजे का व़क्त रहा होगा आसमान से आग बरस रही थी कि अचानक न जाने कहां से उमड़ते हुए स्याह बादलों ने पूरे आसमान को ढंक लिया और बड़ी तेज़ ठंडी हवाएं चलने लगी और देखते ही देखते गरज बरस कर मूसलाधार बारिश शुरू हो गई,,,, सभी का मन मयूर नाच उठा लोग अपनी छतों पर शाम तक बारिश का मज़ा लेते रहे,, सच वो रहमतों की बारिश थी.... शहर की सड़कों पर तो जैसे रौनक बरसने लगी हो,, इतनी भीड़ भाड़ हो गई थी कि क्या बताएं ,,युवा और बच्चे हर्ष और उल्लास से सड़कों पर भीगते हुए नाच रहे थे,,,, मौसम खुशगवार और सर्द हो उठा था…. शाम से रात हो गई थी रह-रहकर काले आसमान में बिजली कड़क उठती थी मारे खुशी के हम लोग सारी रात न सो सके ……इस बात के गवाह ल़ख़नऊ में आज भी आपको मिल जाएंगे के रात से सुबह तक लगातार बारिश होती रही पूरे 2 दिन तक यही हाल रहा।
2 दिन के बाद मौसम बेहद सुहाना हो चुका था और सुबह करीब 10:30 बजे के आसपास मैंने उस्ताद श्री गुलशन भारती साहब को बड़ी ही माज़रत के साथ फोन किया तो वो हंसते हुए बोले कि अब तो आपके बेटे की मुराद पूरी हो गई होगी…. मैं थोड़ा शर्मिंदा था तो उस्ताद ने कहा कि बच्चे अल्लाह की सूरत होते हैं अल्लाह का हुक्म कैसे टाला जा सकता है……
उनकी विनम्रता तो देखिए उन्होंने रहमतों की इस बारिश का सारा श्रेय अल्लाह को दिया।
और आज इतने बरसों के बाद लग रहा है कि जैसे इतिहास ने अपने आप को फिर से दोहरा दिया हो,,,, हुआ यूं के बनारस घराने के मशहूर होनहार शास्त्रीय गायक श्री वरुण मिश्रा जी जिन्होंने अभी पिछले ही बरस ल़ख़नऊ में अपनी संगीत अकादमी को शुरू किया है,,,, घराने दार शास्त्रीय गायन की बेजोड़ गायकी में उनका कोई सानी नहीं है…. आपके पुरखों सहित इनके गुरु श्री रहे पूज्नीय बाबा जी और पिताजी के आशीर्वाद और उनकी अनुकंपा से ये देश-विदेश में अपनी गायकी के परचम को लहरा रहे हैं…..
आज से ठीक 5 दिन पहले ल़ख़नऊ और इसके बाशिंदे इसी तरह की गर्मी से बेहाल हो रहे थे….. तो आप भी अपना तानपुरा उठा कर राग मेघ मल्हार गाने लगे जिसका परिणाम कुछ घंटों में आप सभी के सामने था……उमड़ घुमड़ कर काले बादल आए और झमाझम मूसलाधार बारिश हुई….. पूरा ल़ख़नऊ खुशी में झूम उठा।
वरुण बाबू मुझे अपने बड़े भाई की तरह सम्मान देते हैं…. मेरे आग्रह पर उन्होंने अपना गाया हुआ मेघ मल्हार मुझे आपके समक्ष प्रस्तुत करने की इजाज़त दी है……यदि इसे आप हेडफोन लगाकर सुनेंगे तो निश्चित ही इसकी शीतल और मधुर बरखा की बौछारों से आपका मन भीग जाएगा।
प्यारे दोस्तों उस्ताद जनाब श्री गुलशन भारती जी के चरणों में समर्पित मेरा ये लेख और श्री वरुण मिश्रा जी की मधुर आवाज़ में डूबा हुआ राग मेघ मल्हार आपको कैसा लगा कृपया अब कमेंट बॉक्स में अपने बहुमूल्य विचारों से हमें अवगत अवश्य ही कराइएगा।
हम सभी आभार सहित आप दोनों ही महान गुरुजनों के चरण कमलों में सादर प्रणाम और वंदन करते हैं।
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Dr Mukesh Chitravanshi
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