आज की तारीख जौनपुर इतिहास के पन्नो से।
करामत अली जौनपुर के एक धार्मिक और सामाजिक सुधारक थे। आपका असल नाम अली हनफ़ी जौनपुरी था।आपका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में 11 जून 1800 में मुल्लाहाता नामक स्थान पर हुआ था। आपके पिता अबू इब्राहिम एस.के. मुहम्मद इमाम बक्श, शाह अबुल अजीज देहलवी के शागिर्द , फारसी साहित्य के विद्वान,हादित और इल्म की दूसरी विधाओं में पारंगत थे। कहा जाता है कि करामत अली मुसलमानो के खलीफा हजरत अबु बकर की पीढ़ी के 35 वें वंशज थे। करामत अली की शुरुआती तालीम उनके पिता की देखरेख में हुई। उन्होंने धर्म शास्त्रों की तालीम मौलाना कुद्रातुल्लाह अल्लामी से पाई। 18 साल की उम्र में करामत अली अपने आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ाने के लिए रायबरेली में सैय्यद अहमद से मिले और उनके शागिर्द बन गए।
मौलाना करामत अली ने करीब 46 किताबें और पुस्तिकाएं लिखीं। उनकी किताब मिफ्ताह अल जन्नाह के बहुत से संस्करण प्रकाशित हुए।यह इस उपमहाद्वीप की इस्लाम संबंधी सबसे प्रमुख किताब मानी जाती है। उनकी ज्यादातर किताबें उर्दू में हैं,जबकि उन्होंने इन्हें अरबी और फारसी में भी लिखा था।उनकी कुछ महत्वपूर्ण किताबें हैं-मिफ्ताह–अलजन्नाह,बैआत-इ-तावबा,शिस्त-अल-मुसल्ली,मुखारिब –अल-हर्रूफ,कौकब-ई-दुर्री,तर्जुमा शामल ईतिरमीजी,तर्जुमा मिशाक्त आदि हैं।
जौनपुर में उस वक़्त सिर्फ सुबह और मगरिब की अज़ान हुआ करती थी जिसको आपने पांच वक़्त किया और आपके बड़ी मस्जिद में दिए गए नमाज़ के खुतबे इतने मशहूर हुए की आपके इंतेक़ाल के बाद भी लोग उसे कई साल तक दोहराते रहे। आपने अनगिनत मुहिम चलाई जिसे आज फिर से समझने की ज़रूरत है।
आपने मदरसा ए हनाफ़िया और मदरसतूल क़ुरान शुरू किया जिसमें मदरसा ए हनाफ़िया के पहले टीचर अब्दुल हलीम फिरंगी महली लखनऊ थे।
आपका देहांत 31 मई 1873 में रंगपुर बांग्लादेश में हुआ और मुंशीपरा जामिया मस्जिद रंगपुर में दफन हुए।
जौनपुर अपने शहर प्रतिभाओं को भुला देने में माहिर है और शायद इसी लिए लोगों को इनके काम से कुछ सीखने को भी नहीं मिला।
एस एम मासूम
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