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    रविवार, 26 अप्रैल 2020

    यह रमजान हर वर्ष के रमजान से अलग है | रमजान मुबारक || एस एम मासूम

     यह रमजान हर वर्ष के रमजान से अलग है | रमजान मुबारक || 

    सबसे पहले सभी पाठको को  माह ऐ रमज़ान की बहुत बहुत मुबारकबाद | ध्यान रहे कोरोना जैसी महामारी के कारण यह रमजान हर वर्ष के रमजान से अलग है | माह ऐ रमज़ान के आते ही हर वर्ष मस्जिदों में चहल पहल शुरू हो जाय करती थी चारों  तरफ से इबादतों का सिलसिला नज़र आता था | मोमिनीन आपस में मिलते जुलते थे लेकिन अफ़सोस कोरोना महामारी की वजह से इस वर्ष ऐसा नहीं हो सकेगा |  

    यह ज़िम्मेदारी हर मुसलमान की है ऐसा कोई काम न करे की  कोरोना जैसे महामारी फैले क्यों की मानव की जान बचाने से बढ़ के कोई इबादत नहीं है |  आज जब यह माह ऐ रमज़ान शुरू हुआ तो  हम लॉक डाउन के कारण अपने अपने घरों में बंद बैठे थे | चाँद का ऐलान एक तरफ अल्लाह के महीने के शुरू होने की ख़ुशी लाया तो वही दूसरी तरफ मस्जिदों तक ना  जा सकने का अफ़सोस रहा | 

    यह महीना अल्लाह का महीना है और पूरी कायनात के  हर इंसान की जान बचाना ही सबसे बड़ी इबादत  है और अगर इस अल्लाह के बन्दे की जान पे बन आय तो अल्लाह की ख़ुशी इसी में है हर मुसलमान खुद की जान बचाय और ऐसा कोई काम न करे की दुनिया का कोई भी इंसान चाहे वो किसी भी धर्म का हो हलाकत में पड़े |  यह महीना इबादतों का महीना है इसमें रोज़ा रख के हर मुसलमान कोशिश करता है की गुनाहों से बचे और ऐसे में अगर आपकी वजह से कोई भी इंसांन  हलाकत में पड़ता है या आपकी वजह से यह कोरोना फैलता  है तो आप गुनहगार होंगे | आप की नादानी से अगर यह आपको भी लग जाता है तो यह खुदकुशी कहलाएगी जो की हराम है और रोज़े को ख़त्म कर सकती है |
    इंसानो की जान की इतनी अहमियत है की रोज़ा माह ऐ रमज़ान में वाजिब है लेकिन अगर आपको लगता है की आपको किसी वजह से रोज़ा रहने पे जान का खतरा हो सकता है तो उलेमा ने कहा है ऐसी हालत में रोज़ा तर्क कर दें और हालात सेहत सही होने पे क़ज़ा रखें | बस इसी से आप समझ सकते हैं की इंसान की जान की अहमियत कितनी है |

    नमाज़ फ़र्ज़ है लेकिन अगर आप नमाज़ पढ़ रहे हैं और अचानक आपके कानो में किसी इंसान की जान बचाने के लिए मदद मांगने की आवाज़ आ जाय चाहे वो किसी भी धर्म का हो तो आपके लिए हुक्म है की नमाज़ तो तोड़ दें और सामने वाले इंसान की जान बचा लें |

    इस बार माह ऐ रमज़ान में हर मुसलमान को चाहिए की घर में बैठ के  तिलावत ऐ क़ुरआन करे और बेहतर है की तर्जुमे के साथ क़ुरआन पढ़े जिस से वो समझ सके उनका खुदा उस से क्या बातें कर रहा है|  इबादतों के लिए बेहतरीन वक़्त ही वक़्त आपके पास है |  

    माह ऐ रमज़ान इबादतों का महीना है खाने पीने का महीना नहीं इस बात का अगर आप ख्याल रखेंगे तो शायद आपको हर रोज़ बाज़ारों में न घूमना पड़े जबकि आज हालत ऐसे हैं की बेहतर है हर इंसान के लिए की घरों में रहे और मज़बूरी की हालत में ही घरों से बाहर  जाय | 

    इस बार मस्जिदों में इफ्तार का सिलसिला जारी रखना आपके और समाज के हित में नहीं इसलिए उन्ही पैसों को ु ग़रीबों में बाँट दें जिनके घर इस मुसीबत के वक़्त में खाने के लिए पैसे नहीं | इस से बेहतर अल्लाह की ख़ुशी हासिल करने का कोई तरीक़ा इस माह ऐ रमज़ान में नहीं | 

    हर मुसलमान का फ़रीज़ा है सोशल डिस्टन्सिंग का ख्याल रखे और इस महामारी से खुद को भी बचाय और दूसरों तक इसे फैलने से भी बचाय और उसका शुमार भी इबादत में ही  किया जाएगा और अगर आप ऐसा नहीं करते है और यह  आपको या आपकी वजह से किसी और को लगती है तो आप गुनहगार होंगे | 

    .....एस एम मासूम 
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