जौनपुर शहर गोमती नदी के किनारे बसा एक सुंदर शहर है जो अपना एक विशिष्ट ऐतिहासिक, धार्मिक एवं राजनैतिक अस्तित्व रखता है| यहीं महर्षि यमदग्नि अपने पुत्र परशुराम के साथ रहा करते थे |बौध सभ्यता से ले कर रघुवंशी क्षत्रियों वत्सगोत्री, दुर्गवंशी तथा व्यास क्षत्रिय,भरो एवं सोइरियों का यहाँ राज रहा है | कन्नौज से राजा जयचंद जब यहाँ आया तो गोमती नदी की सुन्दरता से मोहित हो के उसने यहाँ अपना एक महल जफराबाद जौनपुर में नदी किनारे बनाया जिसके खंडहर आज भी मौजूद हैं | उसके बाद आये तुग़लक़ और कुछ वर्षों बाद ही यहाँ शार्की राज्य स्थापित हो गया ,जिनके काल में हिन्दु – मुस्लिम साम्प्रदायिक सदभाव का अनूठा दिगदर्शन रहा और जो विरासत में आज भी विद्यमान है। बोद्ध सभ्यता के निशाँ तो अब यहाँ कम ही बाक़ी हैं लेकिन ऐतिहासिक मंदिरों और शार्की काल में बने भव्य भवनों, मस्जिदों व मकबरों के निशाँ आज भी इस शहर के वैभव की कहानी कह रहे हैं |1484 ई0 से 1525 ई0 तक लोदी वंश का जौनपुर की गद्दी पर आधिपत्य रहा| सिकंदर लोधी ने जौनपुर शहर की सुन्दरता को ग्रहण लगा दिया और यहाँ की मस्जिदों और भव्य इमारतो को बेदर्दी के साथ तोडा | आज जौनपुर में जो खंडहर मिला करते हैं वो सभी सिकंदर लोधी के ज़ुल्म की कहानी कहते हैं |
ऐतिहसिल ज़ुलक़द्र मंज़िल |
इतिहास की रौशनी में मिलता है की जौनपुर का मोहल्ला पानदरीबा जो कोतवाली से केवल दो किलोमीटर पे स्थित है पुराने जौनपुर का इलाक़ा कहा जाता है कभी तुग़लक़ और शर्क़ी समय में जौनपुर का शाही इलाक़ा हुआ करता था | आज भी जिसकी अनगिनत निशानियां इस इलाक़े में मौजूद है | आज भी यह इलाक़ा हिन्दु – मुस्लिम साम्प्रदायिक सदभाव की पहचान है और यहां की आबादी मिलीजुली है | अभी कुछ वर्ष पहले तक यहां पान की मंडी लगा करती थी लेकिन अब यहां से मंडी के हट जाने से शहरी चहल पहल कम रहा करती है और रहाइशी इलाके की शक्ल में बदल चूका है यह पानदरीबा |
Oldest Masjid of Jaunpur |
चार अंगुली मस्जिद खलिस मुख्लिस ने शर्क़ी समय में जिस सय्यद संत उस्मान शिराज़ी की शान में बनवाये थी उनकी क़ब्र मस्जिद के बाहर जो क़ब्रिस्तान है वहाँ आज भी बनी हुयी है और उसपे उनका नाम भी लिखा है | यहां यह बताता चलूँ की एक फ़िरक़ा आज भी पूरे विश्व में मुसलमानो का है जो खुद को महदीवत कहलाता था और उनका यक़ीन है की उनके इमाम सय्यद मुहम्मद जौनपुरी थे जो इन्ही उस्मान शिराज़ी के पौत्र थे |
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ज़मींदार और कलक्टर इलाहाबाद ज़ुलक़द्र बहादुर जिन्होंने पानदरीबा में ज़ुलक़द्र मंज़िल बनवायी | |
इसी खालिस मुख्लिस मस्जिद से सटा हुआ एक मक़बरा काज़िम अली का मक़बरा है जो ज़ुलक़द्र बहादुर नासिर अली के खानदान का क़ब्रिस्तान भी है और ये खानदान इसी पानदरीबा में रहता है | सय्यद काज़िम अली शर्क़ी समय में आये एक सय्यद संत सय्यद अली दाऊद क़ुतुबुद्दीन की नस्ल से हैं जिनकी क़ब्र सदल्ली पुर जौनपुर में आज भी है और मोहल्ला सदल्ली पुर उनके नाम पे बसा है |
सय्यद संत सय्यद अली दाऊद क़ुतुबुद्दीन और सय्यद काज़िम अली की नस्लें पहले लालदरवाजा पे रहती थीं लेकिन पिछले चारसौ वर्षों से वे पानदरीबा में रहती हैं और खानदान ज़ुलक़द्र बहादुर के नाम से मशहूर है | ज़ुलक़द्र मंज़िल,हसन मंज़िल और हाशिम मंज़िल आज भी इसी घराने की मौजूद हैं और ज़ुलक़द्र मंज़िल और हाशिम मंज़िल में आज भी उसी घराने के लोग रहा करते हैं |
जौनपुर का मशहूर पांचो शिवाला जो दीवान काशी नरेश ने बनवाया था वो भी इसी मोहल्ले से सटा हुआ है |यह मंदिर जौनपुर के पानदरीबा मोहल्ले में स्थित है जिसे दीवान काशी नरेश बन्धुलाल के बनवाया था । ये पहले वहाँ पे उप दीवान थे फिर जब राजा चेट सिंह ने रियासत संभाली तो इन्हे दीवान बना दिया ।इन्होने दीवान रहते समय प्रचुर धन एकत्रित किया और जौनपुर के पुरानी बाजार इलाक़े में कुछ भवन और एक शिवाला बनवाया जिसमे से आज केवल शिवाला बचा है |
जौनपुर का ऐतिहसिक चेहल्लुम भी इस पानदरीबा स्थित शेख मुहम्मद इस्लाम के इमामबाड़े से शुरू होता है जो पूरे विश्व में मशहूर है |

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