तुम तो जिगरी
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दोस्त बनकर
आये हो तो 
मित्रवत तुम
दिल रहो 
गर कभी मायूस
हूँ मैं
हाल तो पूछा
करो ..?
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पथ भटक जाऊं
अगर मैं 
हो अहम या
कुछ गुरुर 
डांटकर तुम
राह लाना 
(मित्र है
क्या ........?)
याद रखना
तुम जरूर
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तुम हो प्रतिभा
के धनी हे !  
और ऊंचे तुम
चढ़ो 
पर न सीढ़ी
नींव अपनी 
सपने भी
-भूला करो
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हे सखा या
सखी मेरे 
प्रेम के
रिश्ते बने हैं 
सम्पदा ये
महत् मेरी 
भाव भक्ति
के सजे हैं 
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जिसको मानो
तुम प्रभू सा 
मान नित दिल
से करो 
कृष्ण सा
निज भूल करके 
मित्र की
पूजा करो
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जितने  गुण  हैं
मित्र में  वो 
ग्रहण कर
तू बाँट दे
बांटने से
और बढ़ता 
परख ले पहचान
ले
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सुख भी मिलता
मन है खिलता
आत्म संयम
जागता है 
भय हमारा
भागता है 
ना अकेले
हम धरा पर
संग तुम
-परिवार हो 
खिलखिला दो
हंस के कह दो 
तुम तो जिगरी
यार हो 
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सुरेन्द्र
कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमाचल
भारत 
१५.४.२०१६
८ पूर्वाह्न
-८.१४ पूर्वाह्न 

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