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    शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

    तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू -तारकेश्वर गिरी.

    प्रति दिन सुबह सुबह
    बिस्तर पर ही लेट करसोचता हूँ कि ये जिंदगी,
    तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।


    पुरे दिन कि भाग दौड़
    रात को देर से सोना,
    सोते हुए भी सपनो में
    तुम्हे ही देखना
    सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
    तुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।

    रिश्ते -नाते परिवार
    समाज, झूठो का संसार
    ईमानदारी नहीं रही
    और मतलब के हैं यार
    सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
    तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
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    6 comments:

    1. पुरे दिन कि भाग दौड़
      रात को देर से सोना,
      सोते हुए भी सपनो में
      तुम्हे ही देखना
      सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
      तुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।

      bakhubi bayan kiya hai jivan ki paribhasa ko sabdo me

      जवाब देंहटाएं
    2. रिश्ते -नाते परिवार
      समाज, झूठो का संसार
      ईमानदारी नहीं रही
      और मतलब के हैं यार
      सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
      तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
      ka ba hai

      जवाब देंहटाएं
    3. रिश्ते -नाते परिवार
      समाज, झूठो का संसार
      ईमानदारी नहीं रही
      और मतलब के हैं यार
      सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
      तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
      .
      बहुत खूब भाई

      जवाब देंहटाएं
    4. असल जिन्दगी को परिभाषित करती रचना |
      सुन्दर रचना |

      जवाब देंहटाएं
    5. सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
      तुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।


      सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
      तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।

      बहुत अच्छा विरोधाभास ।
      एक तरफ जिन्दगी से प्यार और दूसरी तरफ इस्तेमाल

      शायद इसीलिये तो जिन्दगी को इन्सान से प्यार नही , जब चाहती है धोखे देती है ।

      जवाब देंहटाएं

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    Item Reviewed: तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू -तारकेश्वर गिरी. Rating: 5 Reviewed By: Taarkeshwar Giri
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