(मा पलायनम से साभार )

गर्मी का मौसम हो ,मौसमी फलों की बात हो और खरबूजे की चर्चा न हो तो बात बेमानी सी लगती है .हमारे यहाँ जब बात खरबूजे की हो और जौनपुर के जमैथा की न हो ,यह हो ही नहीं सकता .यानि की जमैथा और खरबूजा एक दूजे से इस तरह सदियों से जुडें हैं कि इनको अलग करना नामुमकिम सा है .इधर बीच हम सभी विश्वविद्यालय में चल रही परीक्षाओं के मद्देनज़र काफी व्यस्त थे .कल थोड़ी फुर्सत हुई तो मेरे विभाग के इलेक्ट्रानिक मीडिया के सहयोगी जावेद जी का मन हुआ कि इस बार हम लोग जमैथा के खेतों में चल कर खरबूजा खायेंगे और तमाम जानकारियां भी एकत्र करेंगें .बतातें चलें कि जमैथा जौनपुर जनपद का वह ऐतिहासिक गाँव है जो कि कभी श्री हरि विष्णु जी के दस अवतारों में से एक परशुराम जी की जन्मस्थली और उनके पिता श्री महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली हुआ करता था .यह वही स्थान है जहाँ पर पिता के आज्ञा पालन करनें हेतु श्री परशुराम जी नें अपनी माता (रेणुका ) का सर धड से अलग कर दिया था और बाद में पिता द्वारा इस कृत्य पर वरदान मांगनें पर उन्होंने तीन वर मांगे थे कि माता पुनः जीवित हो ,उन्हें यह याद नहो कि उनको मैंने (पुत्र )नें मारा था और मुझे इसका पाप नलगे .इस गाँव में आज भी माता अखंडो देवी का बहुत प्राचीन मंदिर है जो आज भी अपने चमत्कारों से लोंगों को प्रभावितकर रहा है .इस बारे में कभी विस्तृत रिपोर्ट बाद में दूंगा लेकिन नवीनतम अनुसंधानों से भी लोंगों नें यह साबित करनें का प्रयास किया है कि महर्षि यमदग्नि का आश्रम यहीं था .इस सम्बन्ध में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ आशुतोष उपाध्याय नें विस्तृत शोध प्रस्तुत किया है जिसकी चर्चा फिर कभी .
आज सुबह -सुबह ५ बजे मैं अपने सहयोगी जावेद के साथ जमैथा में खरबूजों के खेतों में था .आपको आश्चर्य होगा कि इस पूरे एरिया में रोज करीब ३०० कुंतल खरबूजा आस-पास के जनपदों में ही नहीं अपितु दूसरे प्रदेशों में भी भेजा जाता है .गाँव से सट कर गोमती नदी बहती है पर खरबूजों की सिचाई नदी के पानी से नहीं होती .
खरबूजों की सिचाई के लिए लोंगों नें अपने निजी नलकूप लगा रखें हैं .मैंने जब इस विषय पर किसानों से पूछा तो उन्होंने बताया कि नदी के पानी से खरबूज खराब हो जातें हैं ,इसलिए हम लोग नदी के पानी से सिचाई नहीं करते .मार्च अंतिम सप्ताह तक बोए जाने वाला यह फल अब अंतिम दौर में है .इस क्षेत्र के किसानों की आमदनी का एक सबसे बडा स्रोत है .


आपको बता दें कि सुबह -सुबह ६ बजे ही गाँव की सड़क पर खरबूजे की मंडी लग जाती है और चारो तरफ से किसान केवल खरबूजा लिए ही आता दिखाई पड़ता है .



खरीद दारों का यह हाल है कि खरबूजा आया नहीं कि थोक व्यवसायी अपनी -अपनी शर्तों के साथ किसानों से औने -पौने दामों पर खरीद कर जल्दी भागने के फिराक में लगे रहतें हैं .ऐसे में किसान बेचारा ही ठगा जाता है .जौनपुर जनपद की तीन ऐसी फसलें हैं जिनकी मिठास देश के किसी अन्य क्षेत्र में नहीं मिलेगी उनमे मक्का ,मूली और खरबूज है .ऐसा नहीं है कि जनपद के अन्य क्षेत्रों में खरबूजे की पैदावार नहीं होती लेकिन लोंगों की नजर जमैथा के खरबूज पर ही रहती है .इसमें वह मिठास है जो अन्य क्षेत्रों के खरबूजों में नहीं है .इस क्षेत्र के लोंगों के लिए यह प्रकृति का वरदान है .इन्हें इस वरदान पर नाज़ भी है और हो भी क्यों न ,वाकई दम तो है ही इस खास खरबूजे में ।

चित्र-जावेद अहमद.
गर्मी का मौसम हो ,मौसमी फलों की बात हो और खरबूजे की चर्चा न हो तो बात बेमानी सी लगती है .हमारे यहाँ जब बात खरबूजे की हो और जौनपुर के जमैथा की न हो ,यह हो ही नहीं सकता .यानि की जमैथा और खरबूजा एक दूजे से इस तरह सदियों से जुडें हैं कि इनको अलग करना नामुमकिम सा है .इधर बीच हम सभी विश्वविद्यालय में चल रही परीक्षाओं के मद्देनज़र काफी व्यस्त थे .कल थोड़ी फुर्सत हुई तो मेरे विभाग के इलेक्ट्रानिक मीडिया के सहयोगी जावेद जी का मन हुआ कि इस बार हम लोग जमैथा के खेतों में चल कर खरबूजा खायेंगे और तमाम जानकारियां भी एकत्र करेंगें .बतातें चलें कि जमैथा जौनपुर जनपद का वह ऐतिहासिक गाँव है जो कि कभी श्री हरि विष्णु जी के दस अवतारों में से एक परशुराम जी की जन्मस्थली और उनके पिता श्री महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली हुआ करता था .यह वही स्थान है जहाँ पर पिता के आज्ञा पालन करनें हेतु श्री परशुराम जी नें अपनी माता (रेणुका ) का सर धड से अलग कर दिया था और बाद में पिता द्वारा इस कृत्य पर वरदान मांगनें पर उन्होंने तीन वर मांगे थे कि माता पुनः जीवित हो ,उन्हें यह याद नहो कि उनको मैंने (पुत्र )नें मारा था और मुझे इसका पाप नलगे .इस गाँव में आज भी माता अखंडो देवी का बहुत प्राचीन मंदिर है जो आज भी अपने चमत्कारों से लोंगों को प्रभावितकर रहा है .इस बारे में कभी विस्तृत रिपोर्ट बाद में दूंगा लेकिन नवीनतम अनुसंधानों से भी लोंगों नें यह साबित करनें का प्रयास किया है कि महर्षि यमदग्नि का आश्रम यहीं था .इस सम्बन्ध में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ आशुतोष उपाध्याय नें विस्तृत शोध प्रस्तुत किया है जिसकी चर्चा फिर कभी .
आज सुबह -सुबह ५ बजे मैं अपने सहयोगी जावेद के साथ जमैथा में खरबूजों के खेतों में था .आपको आश्चर्य होगा कि इस पूरे एरिया में रोज करीब ३०० कुंतल खरबूजा आस-पास के जनपदों में ही नहीं अपितु दूसरे प्रदेशों में भी भेजा जाता है .गाँव से सट कर गोमती नदी बहती है पर खरबूजों की सिचाई नदी के पानी से नहीं होती .
खरबूजों की सिचाई के लिए लोंगों नें अपने निजी नलकूप लगा रखें हैं .मैंने जब इस विषय पर किसानों से पूछा तो उन्होंने बताया कि नदी के पानी से खरबूज खराब हो जातें हैं ,इसलिए हम लोग नदी के पानी से सिचाई नहीं करते .मार्च अंतिम सप्ताह तक बोए जाने वाला यह फल अब अंतिम दौर में है .इस क्षेत्र के किसानों की आमदनी का एक सबसे बडा स्रोत है .
आपको बता दें कि सुबह -सुबह ६ बजे ही गाँव की सड़क पर खरबूजे की मंडी लग जाती है और चारो तरफ से किसान केवल खरबूजा लिए ही आता दिखाई पड़ता है .
खरीद दारों का यह हाल है कि खरबूजा आया नहीं कि थोक व्यवसायी अपनी -अपनी शर्तों के साथ किसानों से औने -पौने दामों पर खरीद कर जल्दी भागने के फिराक में लगे रहतें हैं .ऐसे में किसान बेचारा ही ठगा जाता है .जौनपुर जनपद की तीन ऐसी फसलें हैं जिनकी मिठास देश के किसी अन्य क्षेत्र में नहीं मिलेगी उनमे मक्का ,मूली और खरबूज है .ऐसा नहीं है कि जनपद के अन्य क्षेत्रों में खरबूजे की पैदावार नहीं होती लेकिन लोंगों की नजर जमैथा के खरबूज पर ही रहती है .इसमें वह मिठास है जो अन्य क्षेत्रों के खरबूजों में नहीं है .इस क्षेत्र के लोंगों के लिए यह प्रकृति का वरदान है .इन्हें इस वरदान पर नाज़ भी है और हो भी क्यों न ,वाकई दम तो है ही इस खास खरबूजे में ।
चित्र-जावेद अहमद.
डॉ. मनोज मिश्र@वाह इन खरबूजों कि सुगंध और मिठास याद आ गयी
जवाब देंहटाएंbahut swadisht post.
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