प्रति दिन सुबह सुबह
बिस्तर पर ही लेट करसोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
पुरे दिन कि भाग दौड़
रात को देर से सोना,
सोते हुए भी सपनो में
तुम्हे ही देखना
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।
रिश्ते -नाते परिवार
समाज, झूठो का संसार
ईमानदारी नहीं रही
और मतलब के हैं यार
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
बिस्तर पर ही लेट करसोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
पुरे दिन कि भाग दौड़
रात को देर से सोना,
सोते हुए भी सपनो में
तुम्हे ही देखना
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।
रिश्ते -नाते परिवार
समाज, झूठो का संसार
ईमानदारी नहीं रही
और मतलब के हैं यार
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
पुरे दिन कि भाग दौड़
जवाब देंहटाएंरात को देर से सोना,
सोते हुए भी सपनो में
तुम्हे ही देखना
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।
bakhubi bayan kiya hai jivan ki paribhasa ko sabdo me
बहुत ही बढ़िया !
जवाब देंहटाएंरिश्ते -नाते परिवार
जवाब देंहटाएंसमाज, झूठो का संसार
ईमानदारी नहीं रही
और मतलब के हैं यार
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
ka ba hai
रिश्ते -नाते परिवार
जवाब देंहटाएंसमाज, झूठो का संसार
ईमानदारी नहीं रही
और मतलब के हैं यार
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
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बहुत खूब भाई
असल जिन्दगी को परिभाषित करती रचना |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
जवाब देंहटाएंतुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
बहुत अच्छा विरोधाभास ।
एक तरफ जिन्दगी से प्यार और दूसरी तरफ इस्तेमाल
शायद इसीलिये तो जिन्दगी को इन्सान से प्यार नही , जब चाहती है धोखे देती है ।