जौनपुर की सबसे पुरानी पुल निर्माता: बीबी राजे और उनका अमूल्य योगदान
– एस. एम. मासूम
शर्की सल्तनत के इतिहास में बीबी राजे का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाना चाहिए। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शर्की सल्तनत का ज़िक्र बीबी राजे के बिना अधूरा है। वह सुल्तान इब्राहिम शाह शर्की के पुत्र, महमूद शाह शर्की (1440 से 1457 ई.) की पत्नी थीं और समाज सेवा तथा नगर विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
हुसैन शाह शर्की के दौर में बीबी राजे का बनवाया एक पुल
बीबी राजे ने स्वयं को समाज कल्याण के कार्यों के लिए समर्पित कर रखा था। बहुत कम लोग जानते हैं कि जौनपुर में पुल निर्माण की परंपरा की शुरुआत भी उन्हीं के प्रयासों से हुई थी। आज जिस जौनपुर में अनेक पुल और नहरें हैं, वहाँ इस परंपरा की नींव बीबी राजे ने रखी थी।
सबसे पुराना पुल जो आज भी मौजूद है, वह लाल दरवाज़े से लगभग दो किलोमीटर दूर करंजा कला रोड पर स्थित है। यह एक छोटा-सा तीन ताखे वाला पुल है, जिसे आज ‘नाले वाला पुल’ के नाम से जाना जाता है। यह पुल उस समय की एक बड़ी समस्या का समाधान था। गोमती नदी से निकली एक नहर इस रास्ते को काटती थी और ग्रामीणों के लिए यह नहर एक बड़ी बाधा बन चुकी थी। बीबी राजे द्वारा निर्मित इस पुल ने जौनपुर और आस-पास के गाँवों के बीच आवागमन को आसान बना दिया।
अचरज की बात यह है कि यह पुल लगभग 631 वर्ष पुराना है और आज भी जौनपुर को करंजा कला से जोड़ने का कार्य कर रहा है। समय के साथ यह पुल पेड़ों और झाड़ियों से ढँक गया है, जिससे आने-जाने वालों को यह आसानी से दिखाई नहीं देता।
इतिहास की पुस्तकों में इस पुल का उल्लेख बहुत कम देखने को मिलता है, शायद इसका कारण इसका छोटा आकार है। लेकिन इतिहासकार एम.एम. सईद ने अपनी शोध और पुस्तकों में इस पुल और बीबी राजे के योगदान का ज़िक्र किया है, जिससे इस अदृश्य इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय पर प्रकाश पड़ता है।
बीबी राजे का यह योगदान न केवल जौनपुर के बुनियादी ढाँचे के विकास में मील का पत्थर था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि महिलाओं की भूमिका इतिहास में कितनी गहरी और सार्थक रही है – भले ही उसे सदियों तक उपेक्षित क्यों न किया गया हो।
बीबी राजे – एक दूरदर्शी महिला जिन्होंने अपने समय से बहुत आगे की सोची और समाज के लिए अमिट छाप छोड़ गईं।
एस एम मासूम
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