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    बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

    शर्की सल्तनत का ऐतिहासिक और राजनीतिक अवलोकन


    1. शर्की सल्तनत का ऐतिहासिक और राजनीतिक अवलोकन
    शर्की सल्तनत (1394-1479) का उदय दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद हुआ। जौनपुर, शर्की शासकों के शासनकाल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र के रूप में उभरा। सल्तनत की स्थापना मलिक सरवर ने की थी, जो दिल्ली सल्तनत के तुगलक शासकों के अधीन एक गवर्नर थे। उनकी मृत्यु के बाद, शर्की वंश के अन्य शासकों ने जौनपुर को एक सांस्कृतिक और राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। इब्राहिम शाह शर्की (1402-1440) के शासनकाल के दौरान सल्तनत अपने चरम पर पहुंची।

    1.1. सल्तनत की स्थापना

    मलिक सरवर ने 1394 में तुगलक वंश से स्वतंत्रता की घोषणा की। जौनपुर, गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण, एक महत्वपूर्ण शहर बन गया। शर्की शासक स्वयं को इस्लाम के रक्षक मानते थे और उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा दिया। उनकी प्रशासनिक कुशलता ने जौनपुर को एक सुदृढ़ राज्य के रूप में स्थापित किया।

    1.2. दिल्ली सल्तनत से संघर्ष और पतन

    शर्की शासकों ने दिल्ली सल्तनत को चुनौती देने का प्रयास किया। हालांकि उन्होंने कुछ हद तक सफलता प्राप्त की, लेकिन दिल्ली के लोदी शासकों ने उनकी शक्ति को कमजोर कर दिया। 1479 में बहलुल लोदी ने जौनपुर पर कब्जा कर लिया, जिससे शर्की वंश का अंत हो गया।

    2. सांस्कृतिक और वास्तुकला में योगदान

    जौनपुर को "भारत का शिराज" कहा जाता था क्योंकि यह एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र बन गया था। शर्की शासकों ने शिक्षा और कला को संरक्षण दिया। इब्राहिम शाह शर्की के शासनकाल के दौरान अटाला मस्जिद जैसी अद्वितीय मस्जिदों का निर्माण हुआ, जो शर्की वास्तुकला की पहचान बन गईं।

    2.1. वास्तुकला में योगदान

    अटाला मस्जिद शर्की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके अलावा, लाल दरवाजा मस्जिद और झंझरी मस्जिद भी महत्वपूर्ण निर्माण कार्य थे। इन इमारतों में भारतीय और फारसी शैली का सम्मिश्रण देखा जा सकता है। शर्की शासक अपने धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते थे।

    2.2. शिक्षा और साहित्य का संरक्षण

    शर्की शासकों ने मदरसों और साहित्य को संरक्षण दिया। जौनपुर के मदरसे पूरे भारत और मध्य एशिया से विद्वानों को आकर्षित करते थे। यह शहर फारसी साहित्य और इस्लामी अध्ययन का प्रमुख केंद्र बन गया था।

    3. इब्राहिम शाह शर्की का शासन और विरासत

    इब्राहिम शाह शर्की का शासन शर्की सल्तनत का स्वर्ण काल माना जाता है। उनके शासनकाल में जौनपुर सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध हुआ। इब्राहिम शाह ने सैन्य अभियानों के साथ-साथ प्रशासनिक सुधारों पर भी ध्यान केंद्रित किया।

    3.1. सैन्य महत्वाकांक्षाएँ

    इब्राहिम शाह के शासनकाल में सैन्य अभियानों का भी महत्व था। उन्होंने बंगाल और दिल्ली की ओर विस्तार करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी सेना को दिल्ली के लोदी शासकों ने हरा दिया। इस सैन्य विफलता के बाद शर्की वंश का पतन शुरू हो गया।

    4. शर्की सल्तनत का पतन

    इब्राहिम शाह की मृत्यु के बाद, शर्की वंश कमजोर हो गया। आंतरिक संघर्षों और बाहरी दबावों के कारण सल्तनत का पतन हो गया। अंततः, बहलुल लोदी ने जौनपुर पर कब्जा कर लिया और शर्की वंश का अंत हो गया। लेकिन उनकी स्थापत्य और सांस्कृतिक विरासत ने जौनपुर को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल बनाए रखा।

    5. विरासत और ऐतिहासिक महत्व

    दोनों पुस्तकों का निष्कर्ष यह है कि शर्की सल्तनत का ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक था। यद्यपि यह वंश अल्पकालिक था, इसका सांस्कृतिक और बौद्धिक प्रभाव व्यापक था। शर्की शासकों ने शिक्षा, वास्तुकला, और इस्लामी संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो मुगल काल में भी जारी रहा।

    निष्कर्ष

    द शर्की सल्तनत ऑफ जौनपुर और शिराज-ए-हिंद दोनों पुस्तकें शर्की वंश की राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डालती हैं। जौनपुर के शर्की शासकों ने वास्तुकला, शिक्षा, और सांस्कृतिक विकास में जो योगदान दिया, वह मध्यकालीन भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

    Ref:शर्की सल्तनत पर आधारित दोनों पुस्तकों, "द शर्की सल्तनत ऑफ जौनपुर: ए पॉलिटिकल एंड कल्चरल हिस्ट्री" और "शिराज-ए-हिंद" का सार हिंदी में प्रस्तुत है।

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