गुरु तेग बहादुर (जन्म: 18 अप्रैल, 1621 ई - मृत्यु: 24 नवम्बर, 1675 ई सिखों के नौवें गुरु थे। उनका जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनके बचपन का नाम त्यागमल था, वे बाल्य काल से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर थे। करतारपुर की लड़ाई में विजयी होकर आने के बाद उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनका नाम तेगबहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया गया।
देश में जब मुगल सम्राट औरंगजेब का शासनकाल था और धार्मिक, सामाजिक दृष्टि से परिस्थितियां प्रतिकूल थीं, इस माहौल में गुरू तेग बहादुर सिंह धार्मिक प्रचार के लिये देश भ्रमण पर निकले। 1670 में पंजाब की ओर लौटने की यात्रा के दौरान वे जौनपुर आए थे और यहां आकर उन्होंने तीन माह तक विश्राम व चाचकपुर में सई नदी तट पर तप किया था। इसलिये यह जनपद गुरू तेग बहादुर सिंह की तपस्थली के कारण देश में अहम स्थान रखता है। यहां से जाते समय वे अपनी अनेक बहुमूल्य वस्तुएं यहीं पर बतौर यादगार छोड़ गए थे, जिनमें गुरू तेग बहादुर सिंह का लोहे का तीर और गुरू ग्रंथ साहिब की हस्तलिखित प्रति भी सम्मिलित थी। शहर के पूर्व में नदी के बाएं किनारे पर एक स्मारक मंदिर, गुरुद्वारा तप अस्थान हैं जो उस स्थान का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी ने तप किया था।
उनके जीवन का प्रथम उद्देश यही था कि वे धर्म के मार्ग पर चल कर शांति, क्षमा, सहनशीलता, प्रेम, एकता व भाईचारे का संदेश दे सकें। उनके द्वारा दी गई शिक्षा आज भी हमें सहनशीलता और एकता की राह दिखाती है जौनपुर ऋषि मुनियों सूफी संतों की तपोस्थली के साथ साथ सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर की तपोस्थली भी रही है
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