सदर इमामबाड़ा जौनपुर का इतिहास
उस समय जौनपुर इलाहाबाद के अधीन था । मंगली मियाँ बड़े ही धनवान और प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे । उसी समय इन्होने गोमती किनारे इसकी नीव डाली लेकिन यह मुकम्मल नहीं हो सका |
इमामबाड़े में भीतर इमाम हुसैन का ,हज़रत अब्बास का रौज़ा और क़दम ऐ रसूल है । इसकी तामीर फिर से बड़े पैमाने पे १८७८ इo हुयी और इसके फाटक पे लखनऊ के मशहूर शायर नफीस का शेर लिखा है । अब यह पथ्थर सदर इमाम बाड़े के मुख्य द्वार पे नहीं लगा है बल्कि मरम्मत के दौरान निकल गया और फिलहाल मेरे जाने पे यह मस्जिद के सामने इमामबाड़े के अंदर वाले चौक के ऊपर रखा हुआ है |
इस इमामबाड़े में दरअसल कुछ मस्जिदें है कुछ रौज़े मासूमीन (स) के और एक ईदगाह है | इस इमामबाड़े की आस पास की ज़मीन को क़ब्रिस्तान की तरह इस्तेमाल किया जाता है और जौनपुर के मरकज़ी इमामबाड़े की हैसियत से इसकी पहचान है जहां मुहर्रम की दसमी को पूरे शहर के ताज़िये दफन हुआ करते हैं |





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