ऐतिहासिक इमामबाड़ा पंजे शरीफ का इतिहास | हज़रत अली के दस्त (हाथ) के चिन्ह
जौनपुर में इक़बाल अहमद इतिहासकार के अनुसार चार और कुछ लोगों के अनुसार नौ क़दम ऐ रसूल मौजूद हैं । एक क़दम ऐ रसूल ख्वाजा सदर जहां और हज़रत सोन बरीस के बीच में मौजूद है दूसरा मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम पुरानी बाजार में ,तीसरा मोहल्ला सिपाह में और चौथा पंजेशरीफ के पास मौजूद है । कुछ और क़दम ऐ रसूल है जो सदर इमाम बाड़ा , हमज़ापुर और छोटी लाइन रेलवे स्टेशन और बड़े इमाम सिपाह के पास है ।
तब मैंने तलाश किया तो मुझे नौ क़दम ऐ रसूल (स अ व ) मिले ।
पंजा शरीफ जौनपुर : शाहजहाँ के दौर में ख्वाजा मीर के पुत्र सय्यद अली कुछ हज़रत मुहम्मद (स अ व ) के पद चिन्ह और हज़रत अली के दस्त (हाथ) के चिन्ह सऊदी और इराक़ ने १६१५ सन में लाये थे । उन्होंने इसे नसब करने के लिये एक ऊंचा सा टीला उसी जगह बनवाया जहां आज पंजे शरीफ में हज़रत अली का रौज़ा है । उनका देहांत आस पास के भवन बनने के पहले ही हो गया और उनकी क़ब्र मुफ़्ती मोहल्ले में ख्वाजा मीर के मक़बरे के अंदर है ।
पंजे शरीफ का शेष निर्माण एक मुसंभात चमन नामक महिला के बाद में करवाया और उसके विराट गेट पे फारसी में लिखवाया :-
अनुवाद : रौज़ा शाह ऐ नजफ़ का निर्माण चमन ने करवाया इसलिए की कर्म सदैव हरा भरा रहे यहां अल्लाह के शेर का हाथ है ।
पंजे शरीफ का शेष निर्माण एक मुसंभात चमन नामक महिला के बाद में करवाया और उसके विराट गेट पे फारसी में लिखवाया :-
रौज़ा ऐ शाह ऐ नजफ कर्द चमन चू तामीरताकि सरसबज़ अर्ज़ी हुस्न अम्लहां बाशदसाल ऐ तारिख चुनी वजहे खेरद मुफ्त भलेपंजा ऐ दस्त यदुल्लाह दर इज़ा बाशद
अनुवाद : रौज़ा शाह ऐ नजफ़ का निर्माण चमन ने करवाया इसलिए की कर्म सदैव हरा भरा रहे यहां अल्लाह के शेर का हाथ है ।
इस पंजे शरीफ से उत्तर की तरफ १०० क़दम की दूरी पे चमन की पुत्री नौरतन ने हज़रत अब्बास अलमदार का रौज़ा और इमामबाड़ा बनवाया जो आज भी मौजूद है और यहां बड़ी मुरादें पूरी हुआ करती हैं ।
हज़रत अब्बास अलमदार का रौज़ा
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