शर्की क्वीन बीबी राजी का शिक्षा और सूफीवाद में योगदान
इब्राहिम शाह शार्की (1400-1440), महमूद शाह शार्की (1440-1457), और हुसैन शाह शार्की (1458-1483) ने 15वीं शताब्दी की उत्तर भारतीय राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत की।
शर्की क्वीन बीबी राजे ने लगभग 33 वर्षों तक, अपने पति महमूद शाह शार्की और बाद में अपने पुत्र हुसैन शाह शार्की के शासनकाल के दौरान पर्दे के पीछे से सत्ता संभाली।
बीबी राजी एक बुद्धिमान, प्रभावशाली और दानशील महिला के रूप में जानी जाती थीं।
1440 से 1473 तक, यानी अपने पति के सिंहासन पर बैठने से लेकर अपनी मृत्यु तक, उन्हें शार्की सल्तनत का वास्तविक शासक माना जाता था।
उन्होंने न केवल शार्की राजनीति में बल्कि जौनपुर को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शार्की शासनकाल में जौनपुर शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था, जिसे "शिराज-ए-हिंद" कहा जाता था। यहां ना केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से, बल्कि मध्य एशिया से भी छात्रों और विद्वानों को आकर्षित करता था।
शर्की क्वीन बीबी राजी स्वयं शिक्षित और विद्वान थीं। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए:
1. खानकाह का निर्माण: 2. मदरसों का निर्माण: 3: महिला शिक्षा
उन्होंने सैयद अली दाऊद के सम्मान में बेगमगंज इलाके में एक खानकाह का निर्माण कराया, जहां लोग आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए एकत्र होते थे।
लाल दरवाजा मस्जिद के पास एक मदरसा हुसैनिया (कॉलेज) बनवाया। इस मदरसे में देशभर से छात्र पढ़ने आते थे।उच्च योग्य उलेमा (विद्वान) यहां पढ़ाने के लिए नियुक्त किए गए। उन्होंने छात्रों और विद्वानों के लिए छात्रवृत्ति का प्रबंध किया।
1441 में उन्होंने जौनपुर में महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। यह उस समय महिला शिक्षा को बढ़ावा देने का साहसिक कदम था।
बीबी राजे का सूफी संतों के प्रति सम्मान बहुत मशहूर है। 15वीं शताब्दी में जौनपुर सूफीवाद का प्रमुख केंद्र बन गया था। इसी कारण से सूहरावर्दी, चिश्ती, क़लंदरी, मदारी और शत्तारी जैसे सूफी सिलसिलों के संतों ने जौनपुर को अपना निवास बनाया।
1. हजरत सुलैमान शाह: जौनपुर के प्रसिद्ध सूफी संत हजरत सुलैमान शाह के प्रति उनका विशेष लगाव था।
1462 ईस्वी में उनकी मृत्यु के बाद बीबी राजी ने उनकी समाधि पर एक भव्य मकबरा बनवाया, जो आज भी जिला जेल परिसर में मौजूद है।
2. सैयद अली दाऊद: उन्होंने सैयद अली दाऊद के नाम पर एक गांव की स्थापना की, जिसे आज "सैयद अलीपुर" कहा जाता है। आज का सदल्ली पर इलाका जहां सय्यद अली दावूद की कब्र भी मौजूद है। उन्होंने उनके लिए मस्जिद और खानकाह का भी निर्माण कराया।
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