पुराने समय में लोगों को समाज के लिए कुछ करने का शौक़ हुआ करता था तो ऐसे में लोग किताबें लिखा करते थे | कोई इतिहास पे लिखता कोई धर्म पे तो कोई विज्ञान पे लिखा करता था | यह वो दौर था जब किताबें लिख भी गायें तो उन्हें छपवाना बहुत मुश्किल हुआ करता था लेकिन ऐसे में भी बहुत से इतिहासकारों ने जौनपुर के इतिहास पे लिखा जो आज भी किताबी शक्ल में किसी न किसी के पास देखने को मिल जाया करती हैं |
जौनपुर का इतिहास लिखने वालों ने तुगलक़ ,शार्की, मुग़ल और नवाबों पे लिखी पुरानी किताबों के सहारे अपने विचारों को पेश किया जिसमे बहुत से कमियाँ या गलतियां भी हुयी और अक्सर कुछ इमानदार इतिहासकारों ने अपनी किताब में कई पुराने इतिहास कारों द्वारा लिखे सभी शोध को एक साथ पेश कर दिया जिस से एक आम इंसान जो उस किताब से ज्ञान हासिल करना चाहता था उलझ के रह गया और समाज में अलग अलग तरह की बातें जौनपुर के इतिहास के बारे में फैलने लगी |
आज यह आवश्यक होता जा रहा है की जब जौनपुर के इतिहास को पेश किया जाय तो तुगलक ,मुगलों इत्यादि के भारत में आगमन में उलझे बिना जौनपुर में उनके आगमन , कारण और उनके शासन , सभ्यता और निर्माण पे अधिक ध्यान दिया जाय जिस से जौनपुर निवासी आसानी से जौनपुर के इतिहास को समझ सकें और आज जो ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं और हम अपनी आँखों से देख रहे हैं उनका चित्रण किया जाय |
आज भी जब कोई जौनपुर के शाही पुल का इतिहास बताता है तो मुइन खान खाना और अकबर के समय में बना और इसके खम्बे कितने चौड़े हैं बस इतने में ही सिमट के रह जाता है जबकि शाही पुल का शानदार इतिहास उस समय तक पूरा नहीं होगा और सही रूप में नहीं आयगा जब तक उस पुल के बन्ने के कारणों और उसकी सुन्दरता ,सुलेख कला ,उसके खम्बो पे लिखी बातें, और नक्काशी इत्यादि जो आज दिख रही है उसका ज़िक्र ना किया जाय |
मेरा घराना जौनपुर में पिछले ७२३ वर्षों से रहता आया है और जौनपुर के इतिहास की बहुत सी कड़ियाँ खुद हमारे घराने से जुडी हैं इसलिए मैंने जौनपुर के इतिहास पे शोध किया और अपने यहाँ मौजूद पुरानी किताबों और कशकोल (डायरी ) का सहारा लेते हुये एक निष्कर्ष निकाला जो अपने आप में बहुत कुछ नयी बातें आपके सामने लायगा |
इंतज़ार करें जल्द पिछले सात वर्षों की मेहनत आपके सामने होगी किताब की शक्ल में जो जौनपुर के उस इतिहास को फिर से पुनर्जीवित करेगी जिसपे या तो इतिहासकारों ने ध्यान नहीं दिया या फिर उन्होंने इतिहास लिखते समय खुद उन ऐतिहासिक स्थलों को और आस पास के समाज को ध्यान से देखने की आवश्यकता नहीं समझी |
एस एम् मासूम
9452060283
जौनपुर का इतिहास लिखने वालों ने तुगलक़ ,शार्की, मुग़ल और नवाबों पे लिखी पुरानी किताबों के सहारे अपने विचारों को पेश किया जिसमे बहुत से कमियाँ या गलतियां भी हुयी और अक्सर कुछ इमानदार इतिहासकारों ने अपनी किताब में कई पुराने इतिहास कारों द्वारा लिखे सभी शोध को एक साथ पेश कर दिया जिस से एक आम इंसान जो उस किताब से ज्ञान हासिल करना चाहता था उलझ के रह गया और समाज में अलग अलग तरह की बातें जौनपुर के इतिहास के बारे में फैलने लगी |
आज भी जब कोई जौनपुर के शाही पुल का इतिहास बताता है तो मुइन खान खाना और अकबर के समय में बना और इसके खम्बे कितने चौड़े हैं बस इतने में ही सिमट के रह जाता है जबकि शाही पुल का शानदार इतिहास उस समय तक पूरा नहीं होगा और सही रूप में नहीं आयगा जब तक उस पुल के बन्ने के कारणों और उसकी सुन्दरता ,सुलेख कला ,उसके खम्बो पे लिखी बातें, और नक्काशी इत्यादि जो आज दिख रही है उसका ज़िक्र ना किया जाय |
मेरा घराना जौनपुर में पिछले ७२३ वर्षों से रहता आया है और जौनपुर के इतिहास की बहुत सी कड़ियाँ खुद हमारे घराने से जुडी हैं इसलिए मैंने जौनपुर के इतिहास पे शोध किया और अपने यहाँ मौजूद पुरानी किताबों और कशकोल (डायरी ) का सहारा लेते हुये एक निष्कर्ष निकाला जो अपने आप में बहुत कुछ नयी बातें आपके सामने लायगा |
इंतज़ार करें जल्द पिछले सात वर्षों की मेहनत आपके सामने होगी किताब की शक्ल में जो जौनपुर के उस इतिहास को फिर से पुनर्जीवित करेगी जिसपे या तो इतिहासकारों ने ध्यान नहीं दिया या फिर उन्होंने इतिहास लिखते समय खुद उन ऐतिहासिक स्थलों को और आस पास के समाज को ध्यान से देखने की आवश्यकता नहीं समझी |
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