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    सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

    कुछ गाँव हैं बदहाल हिन्दुस्तान की आजादी से अब तक |

    सरकार प्रदेश का सर्वागीण विकास करने का दावा कर रही है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाके तक हर सुविधाओं सुलभ कराने का काम किया जा रहा है। वही आजादी के छह दशक बाद भी विकास खंड का पल्टूपुर व खड़वा गांव पूर्ण रूप से उपेछित है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन गांवों के लोगों को घर से बाहर निकलने के लिए बसुही नदी पार करके जाना होता है। जहां बास का पुल बनाया है। जिसे लोग अपनी जान जोखिम में डालकर ही पार करते है।

    ब्लाक मुख्यालय से करीब दस किमी दूर स्थित पल्टूपुर व खड़वा गांव स्थिति है। गांव में आने-जाने के लिए कच्ची सड़क ही है। जबकि बीच से बसुही नदी गुजरी है। जिस पर ग्रामीणों ने बांस का पुल बना दिया है। यह स्थिति आजादी के पहले से ही बनी हुई है। इसी रास्ते से प्रतिदिन छात्र-छात्राएं सहित अन्य ग्रामीण अपने काम से गांव के बाहर निकलते है। ग्रामीणों को सबसे ज्यादा दिक्कत बारिश में होती है। जब नदी में पानी होने के कारण उक्त पुल डूब जाता है। मजबूरी में ग्रामीणों को छह से सात किमी दूर गणेशपुर गांव होते हुए जाना पड़ता है। जिसे लेकर ग्रामीण काफी चिंतित रहते है। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि वोट लेने के लिए चुनाव के समय आते है और इस समस्या का का निदान करने का वादा कर चले जाते है। मगर वह अपने वायदे को भूल जाते है।


    गांववाले यदि सरकारी  तंत्र के सहारे बैठे रहे तो शायद इस पुल का निर्माण कभी ना हो सके | आवश्यकता है गाव वालों को मिल के एक साथ एक दुसरे के  सहयोग से इसके लिए आवाज़ उठाने की | मुझे याद आया की पिछली बार जब मैं कांग्रेस जिला अध्यछ श्री लालजीत चौहान जी से मिला था तो उन्होंने ने बताया था की उनके बचपन में उनके गाँव सैदपुर गडौर में ऐसी ही एक नाले को पार करते हुए वो पढने जाया करते थे | और उन्होंने प्रण किया था की यदि किसी काबिल बना तो सबसे पहले इस नाले पे पुल बनाऊंगा | और उन्होंने यह कर दिखाया |

    श्री लालजीत चौहान जौनपुर जिले के सैदपुर गडऊर के रहने वाले हैं और अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव से ही प्राप्त की | बचपन में जब नेता जी अपने स्कूल जाते थे जो की एक डेढ़ किलोमीटर उनके घर से दूर था | उस स्कूल के रास्ते में एक नाला पड़ता था जिसे पार करवाने के लिए उनके घरवाले उनको अपने कंधे पे ले जाया करते थे | नेता जी को समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा वंही से मिली और उन्होंने सोंचा यदि मैं बड़ा हो कर कुछ करने लायक बन सका तो सबसे पहले तो इस नाले पे पुल बनवाऊंगा और जैसा उन्होंने प्रण किया था वैसा किया भी | वो नाला और वो उनका गाँव के लोगों के सहयोग से उनके श्रमदान से बनवाया पुल आज भी मौजूद है जिसे उनके गाँव सैदपुर गडऊर जा के मैंने खुद देखा |श्रमदान से बनी इस पुलिया को बाद में एक किलोमीटर की सड़क से जोड़ा गया जो गाँव ने अंदरूनी छोर तक को जोडती है |

    गांववालों को श्री लालजीत चौहान से प्रेरणा लेते हुए ऐसा ही कोई क़दम उठाना चाहिए |
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