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    शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

    अनोखा है राउर बाबा क मेला ।
    (जौनपुर से विशेष)



    हमारा देश भी कितनी विचित्रताओं , और परम्पराओं के साथ जी रहा है .प्रगतिवादी विचार धारा के लोंगों को बकवास भले ही लगे लेकिन इस महान देश में बहुत ऐसे लोग हैं जिन्हें केवल श्रद्धा और विश्वास के अलावा और कुछ सोचनें के लिए नहीं है .आपको यह विचित्र किन्तु सत्य घटना से दो -चार कराता हूँ .हमारे जौनपुर जनपद में ही मई ग्राम पंचायत के अर्न्तगत एक अनोखा स्थान है ,वह है राउर बाबा की ऐतिहासिक सिद्ध पीठ , जहाँ केवल साल में एक बार लोग गंगा दशहरा के आस-पास ७ दिनों के लिए भारी संख्या में जुटते हैं ,पवित्र सरोवर की परिक्रमा करतें हैं (जिस सरोवर में मैंने कभी पानी नहीं देखा )और उद्देश्य केवल और केवल भूत -प्रेत से मुक्ति ।



     

    राउर बाबा कौन थे ,इनकी ऐतिहासिकता क्या है ,मैं अभी तक पता नहीं कर पाया .कारण संभवतः यही है कि इसका कोई संकेतक साक्ष्य मुझे अभी तक प्राप्त नहीं है लेकिन यहाँ पर जुटने वाली भारी भीड़ बहुत कुछ कह जाती है .इस पूरे मेला परिसर में चाय -पान की दुकानों से ज्यादा ओझाओं और तांत्रिकों की दुकानें सजती हैं .भूत -प्रेत से मुक्ति पानें की आशा में आये हुए लोंगों से बात -चीत करनें पर पता चला कि यहाँ आने मात्र से भूत -पिशाच जल कर नष्ट हो जाते हैं।





    राउर बाबा के समाधि के ऊपर पार्वती -सरस्वती की प्रतिमा है .बाबा की समाधि के पीछे उनकी पत्नी सती भुनगा की समाधि है .वही पर सटी हुई हनुमान जी की भी मूर्ति है .परिसर में श्री राम चन्द्र जी -लक्ष्मन-सीता जी की भी मूर्तियाँ हैं .जनश्रुति के अनुसार प्रभु श्री राम चन्द्र जी द्वारा सभी तीर्थों से लाये गए जल को इस सरोवर में डाला गया है इस लिए गंगा दशहरा के दिन इस पवित्र सरोवर का जल अमृत मय होता है .इस स्थान को "राम गया " भी कहा जाता है .कहा जाता है कि १५० वर्ष पूर्व मीरजापुर के
    हर सुख दास मोहता का पूरा परिवार प्लेग की बीमारी के चलते नष्ट हो गया था तब राउर बाबा की कृपा से ही उनका वंश आगे चल पाया ,अपनी मृत्यु के पूर्व हर सुख दास मोहता नें अपने परिवारी जनों को यह निर्देश दिया था कि प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को मेरे समस्त वंशज गंगा दशहरा के दिन बाबा के दरबार में आयेंगे .मैंने भी देखा कि उस परिवार के सभी सदस्य इस मेले में आये थे .खास बात यह है कि अब यह परिवार काफी बढ़ चुका है और देश के कई प्रान्तों में निवास कर रहा है लेकिन आस्था ऐसी कि सब के सब बाबा की समाधि की पूजा में लीन थे .इस मेले में आने वाले लोग स्थानीय कम होतें हैं लेकिन कोलकाता,मुंबई ,कटक ,भुवनेश्वर ,रायपुर और विजय नगर आदि स्थानों से काफी लोग इस मेले में आते हैं . एक सप्ताह तक चलनें वाले इस मेले में हर जगह केवल ओझाई और भूत -प्रेत के निवारण का ही चक्कर दिखाई पड़ता है .गंगा दशहरा कें दिन मेला अपनें चरम पर होता है फिर दो -तीन बाद तक समाप्त हो जाता है .और सबसे खास बात यह कि यह एक मामले में अनोखा है कि यहाँ पुरोहित का कार्य ब्राह्मण नहीं करते ,यहाँ पर पुरोहित परम्परागत रूप से एक परिवार का होता है जो कि पिछडी जाति (बिन्द )है .यहाँ भूतों को उतरने की क्रिया देख कर मैं दंग हूँ .इस परिसर में कैमरा लेकर घूमना खतरे से खाली नहीं है .मेरे साथ एक सम्मानित हिन्दी दैनिक के पत्रकार ओंकार जी हैं उन्होंने सारी तस्वीरों को चुपके -चुपके लिया .कोई देख लेता तो मुसीबत थी ,तब भी हम लोग बेहतरीन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद नहीं कर पाए .यह हमारे इक्कीसवीं सदी के भारत की तस्वीर है ऐसे में हम भाई जाकिर जी को क्या बताएं .अभी ज्ञान का सूरज लगता है लम्बा समय लेगा उदय होनें में ....

    (मा पलायनम से साभार) --

    प्रस्तुति -डॉ मनोज मिश्र
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    1 comments:

    1. डॉ मनोज मिश्र जी एक बेहतरीन ज्ञानवर्धक लेख़ पेश करने का शुक्रिया. आशा है ऐसे ही जौनपुर ब्लोगेर्स मैं आप हम सबके साथ अपनी बात बांटते रहेंगे. नायब तस्वीरों का भी शुक्रिया.

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    Item Reviewed: Rating: 5 Reviewed By: डॉ. मनोज मिश्र
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