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    मंगलवार, 15 जुलाई 2014

    मीरजापुर और वाराणसी की "कजरी";

    उत्तर प्रदेश के प्रचलित लोकगीतों में ब्रज का मलार, पटका, अवध की सावनी, बुन्देलखण्ड का राछरा, तथा मीरजापुर और वाराणसी की "कजरी"; लोक संगीत के इन सब प्रकारों में वर्षा ऋतु का मोहक चित्रण मिलता है| महिलाओं द्वारा समूह में प्रस्तुत की जाने वाली कजरी को "ढुनमुनियाँ कजरी" कहा जाता है| कजरी शब्द काजल से लिया गया है जिसे सुन्दरता बढाने के लिए आँखों में लगाया जाता रहा है | इसके इतिहास और उत्पत्ति से जुडी  बहुत से कहानियाँ हैं जिनमे एक ये है कि कजली नाम की एक लड़की  थी जिसका प्रेमी उसे छोड़ गया था उसने खुद को कज्मल नमक देवी को सपर्पित कर दिया था और प्रेमी की याद में उसे बुलाने के लिए गाया करती थी जिसे आज कजरी कहा जाता है |


    हिन्दी फिल्मों में "कजरी" का मौलिक रूप कम मिलता है, किन्तु 1963 में प्रदर्शित भोजपुरी फिल्म "बिदेसिया" में इस शैली का अत्यन्त मौलिक रूप प्रयोग किया गया है| इस कजरी गीत की रचना अपने समय के जाने-माने लोकगीतकार राममूर्ति चतुर्वेदी ने और संगीतबद्ध किया है एस.एन. त्रिपाठी ने| यह गीत महिलाओं द्वारा समूह में गायी जाने वाली "ढुनमुनिया कजरी" शैली में मौलिकता को बरक़रार रखते हुए प्रस्तुत किया गया है| इस कजरी गीत को गायिका गीत दत्त और कौमुदी मजुमदार ने अपने स्वरों से फिल्मों में कजरी के प्रयोग को मौलिक स्वरुप दिया है| आप यह मर्मस्पर्शी "कजरी" सुनिए|


    सावन का महीना आते ही गाँव में झूले पड़ जाया  करते हैं और लड़कियां  मिल के इस गीत का आनंद लेती हैं |

    हमारे गांव में इस समय महिलाये झूले पर बैठ कजरी गा रही होंगी।,,,,, डॉ पवन विजय|


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    Item Reviewed: मीरजापुर और वाराणसी की "कजरी"; Rating: 5 Reviewed By: S.M.Masoom
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